2122 2122 2122 212
स्वप्न का जो नाभिकी ये संलयन प्रारम्भ है
क्या किसी तारे का फिर से नव सृजन प्रारम्भ है
इस जगत को श्रेष्ठतम रचना समर्पित कर सकूँ
प्रति निशा मसि शब्द निद्रा का हवन प्रारम्भ है
मन-जगत घर्षण से अंतस में अनल जो है प्रकट
भावनाओं का उसी से आचमन प्रारम्भ है
लेखनी नें स्वयं से संकल्प इक धारण किया
एकता के भाव का सो संवहन प्रारम्भ है
चक्षुओं पर जो लगा कर घूमते चश्मा उन्हें
ताप तो सहना पड़ेगा ऊष्णन प्रारम्भ है
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सोमेश जी सादर अभिवादन और हार्दिक आभार
इस जगत को श्रेष्ठतम रचना समर्पित कर सकूँ
प्रति निशा मसि शब्द निद्रा का हवन प्रारम्भ है
यह कवि की नियति है यही उसकी तपस्या है ,वो रात भर जागकर अपनी नींद को हवन करके बेहतर शब्दों से भावनाएं रचता है,
बधाई पंकज भाई
आदरणीय ब्रजेश जी बहुत बहुत आभार
आदरणीय सुरेंद्र जी आपको हार्दिक आभार, मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत आभार
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय पंकज वाह बेहतरीन...
आद0 पंकज जी सादर अभिवादन। इतनी शुद्ध हिंदी में ग़ज़ल मुझे आपकी ही मिलती है। अच्छे अच्छे खयाल लाये हैं आप। बधाई स्वीकार कीजिये
आदरणीय अजय जी सादर आभार
आदरणीय बसन्त जी बहुत बहुत आभार
आदरणीय नरेंद्र जी सादर आभार
वाह शानदार रचना...
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