कभी पेट पर लेकर अपने, हमें सुलाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
छाया देते घने पेड़ सी, लड़ते वो तूफानों से
हो निष्कंटक राह हमारी, उनके ही बलिदानों से
विपरीत रहें हालात मगर, कभी नहीं घबराते हैं
ओढ़ हौसलों की चादर को, हँसते और हसाते हैं
हँसकर तूफानों से लड़ना, हमें सिखाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
बोझ लिए सारे घर का वो, दिन भर दौड़ लगाते हैं
हम सबके सपनो की खातिर, भूखे भी रह जाते हैं
गिरवी रखते पगड़ी अपनी, घर को कभी बचाने में
जूते घिस जाते हैं उनके, हमको योग्य बनाने में
खुद के कपड़े फ़टे हुए पर, हमें सजाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
लगते भले कठोर हमें पर, नाज़ुक दिल के होते हैं
दर्द कभी हमको होता तब, पापा दिल से रोते हैं
करें सामना डटकर कल का, यहीं हमें सिखलाते हैं
सही गलत क्या दुनिया में है, हमें सदा बतलाते हैं
गिरके उठना उठके चलना, सदा सिखाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बहोत खूब
बेहतरीन ,ऐसा गीत लिखने के लिए साधुवाद
आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। सही कहा आपने, बिना पिता सब सूना हो जाता है। बेहतरीन प्रतिक्रिया दी आपने। इससे मुझे लेखन में मदद मिलती है। बहुत बहुत आभार आपका।
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,
पिता को समर्पित बहुत ही निश्छल भावनाओं से परिपूर्ण गीत । सच है, अगर पिता है तो यह संसार और हर चीज़ हमारी है । पिता संबल होता है , सहारा होता है और हर बच्चा उसका राजदुलारा होता है । पिता बच्चों का चलता-फिरता पूरा संसार होता है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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