साजन मेरे मुझे बताओ, कैसे दीप जलाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
इंतिजार में तेरे साजन, लगा एक युग बीता
हाल हमारा वैसा समझो, जैसे विरहन सीता
सूनी सेज चिढ़ाए मुझको, अखियन अश्रु बहाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
वे सुवासित मिलन की घड़ियाँ, लगता साजन भूले
बौर धरे हैं अमवा महुआ, सरसो भी सब फूले
सौतन सी कोयलिया कूके, किसको यह बतलाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
तपती धरती सूखी नदियाँ, बदरा बस ललचाये
छाँव मिले ना मेरे दिल को, दुख बढ़ता ही जाए
जेठ दुपहरी बदन जलाये, इसको बुझा न पाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
सावन की घनघोर घटाएँ, करें रात अँधियारी
नाचे मोर पपीहा जब जब, आये याद तुम्हारी
चमक उठे चपला जब नभ में, मैं विरहन डर जाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
पाती भेजूँ कितनी तुमको, गयी कसम से हारी
भूल गए क्यों मुझको तुम हे, मेरे कृष्ण मुरारी
पिया मिलन की आस लिए मैं, गीत विरह के गाउँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 अजय कुमार जी सादर अभिवादन। बहुत बहुत आभार आपका इस रचना पर उपस्थित होकर हौसला अफजाई के लिए
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन। गीत पसन्द आयी, लिखना सफल हो गया। आपका उपस्थिति और हौसला अफजाई के लिए दिल से आभार । सादर
सुन्दर रचना .
बधाई हो...
बहुत सुंदर विरह गीत सुरेन्द्र नाथ भैया बहुत बहुत बधाई |
आद0 वसन्त कुमार शर्मा जी सादर अभिवादन। रचना की प्रशंसा से अभिभूत हूँ। बहुत बहुत आभार आपका
वाह बेहतरीन विरह गीत
आद0 सलीम साहब सादर अभिवादन। आपकी प्रतिक्रिया से रचना सुशोभित हुई। आभार आपका
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। आभार आपका उत्साहवर्द्धन के लिए।
आद0 आली ज़नाब समर साहब सादर अभिवादन। आपकी रचना पर उपस्थिति और हौसला अफजाई से धन्य हुआ। बहुत बहुत आभार आपका।
आपका सुझाव बेहद उचित हैं। अभी सुधार कर लेता हूँ।
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