कभी पेट पर लेकर अपने, हमें सुलाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
छाया देते घने पेड़ सी, लड़ते वो तूफानों से
हो निष्कंटक राह हमारी, उनके ही बलिदानों से
विपरीत रहें हालात मगर, कभी नहीं घबराते हैं
ओढ़ हौसलों की चादर को, हँसते और हसाते हैं
हँसकर तूफानों से लड़ना, हमें सिखाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
बोझ लिए सारे घर का वो, दिन भर दौड़ लगाते हैं
हम सबके सपनो की खातिर, भूखे भी रह जाते हैं
गिरवी रखते पगड़ी अपनी, घर को कभी बचाने में
जूते घिस जाते हैं उनके, हमको योग्य बनाने में
खुद के कपड़े फ़टे हुए पर, हमें सजाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
लगते भले कठोर हमें पर, नाज़ुक दिल के होते हैं
दर्द कभी हमको होता तब, पापा दिल से रोते हैं
करें सामना डटकर कल का, यहीं हमें सिखलाते हैं
सही गलत क्या दुनिया में है, हमें सदा बतलाते हैं
गिरके उठना उठके चलना, सदा सिखाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन।
सुंदर गीत हुआ है हार्दिक बधाई ।
आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। आपकी रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन का हृदय तल से आभार।
आद0 रक्षिता सिंह जी सादर अभिवादन। आपको लेखनी पसन्द आयी,लिखना सार्थक हुआ। आभार आपका
आद0 पंकज कुमार मिश्र जी सादर अभिवादन। रचना पर आपकी गरिमामयी उपस्थिति और उत्साहवर्धन का हृदय से आभार
हार्दिक बधाई आदरणीयसुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप जी।बेहतरीन प्रस्तुति।
आदरणीय सुरेन्द्र जी, दिल को छू लेने बाली बहुत ही बेहतरीन रचना।
पिता के व्यक्तित्व को बारीकियों से दर्शाती ये रचना बहुत ही सराहनीय है.....
हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय सुरेन्द्र जी पिता प्रेक् ख़ूबरूगीत के लिए बहुत सारी बधाई
आद0 नरेंद्र सिंह चौहान जी सादर अभिवादन। बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्द्धन के लिए
आद0 सोमेश जी सादर अभिवादन। रचना पसन्द करने के लिए कोटिश आभार
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