For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज वह बहुत खुश थी, सारे गुलाब बिक गए थे. रात काफी हो चली थी और एक आखिरी गुलाब को पास रखकर वह पैसे गिनने में तल्लीन थी तभी एक कार उसके पास रुकी.
"वो गुलाब देना", अंदर से एक नवयुवक ने आवाज लगायी. उसने एक उड़ती हुई नजर युवक पर डाली और उसकी बात अनसुना करते हुए वापस पैसे गिनने में लग गयी.
"अरे सुना नहीं क्या, वो गुलाब तो दे, कितने पैसे देने हैं", युवक ने इस बार थोड़ी ऊँची आवाज में कहा, उसके स्वर में झल्लाहट टपक रही थी.
उसने सर उठाकर युवक को देखा और पैसे अपनी थैली में रखते हुए बोली "यह बेचने के लिए नहीं है भैया".
युवक यह सुनकर गाड़ी से नीचे उतर आया और थोड़े खुशामदी स्वर में बोला "क्यों नहीं बेचेगी इसे, अच्छा एक काम कर, दुगुनी कीमत ले ले".
उसने युवक को देखा और मुस्कुराते हुए बोली "यह मैंने अपनी माँ के लिए रखा है, आज के दिन उनको गिफ्ट करना है".
"अच्छा तू सौ रुपये ले ले लेकिन गुलाब दे दे, मुझे गिफ्ट करना ही है आज. समझा कर, माँ को नहीं भी दिया तो क्या फ़र्क़ पड़ेगा", युवक ने लगभग मिन्नत करते हुए कहा. उसने युवक के हाथ में पकडे सौ के नोट को देखा और सोचने लगी. युवक शायद किसी और विकल्प के अभाव में हर कीमत पर गुलाब लेना चाहता था और वह माँ को ही देना चाहती थी.
उसने गुलाब उठाया और अपने सीने से लगा लिया, युवक अब मायूस हो गया और पलट कर जाने लगा. उसने आवाज लगायी "भैया, ले जाओ गुलाब".
युवक ने झपट कर गुलाब लिए और सौ रुपये पकड़ा दिए, उसने नोट को मुट्ठी में कस कर बंद किया और जल्दी जल्दी घर की तरफ चल पड़ी, शौक पर जरुरत भारी पड़ गयी.
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 772

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on February 12, 2018 at 4:32pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी

Comment by विनय कुमार on February 12, 2018 at 4:31pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी

Comment by विनय कुमार on February 12, 2018 at 4:31pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय तेज वीर सिंह जी

Comment by विनय कुमार on February 12, 2018 at 4:31pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया नीता कसार जी

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 10, 2018 at 11:34am

शौक और जरूरत, दोनों ही अक्सर समयानुसार अपना अर्थ बदलते रहते है..... प्रस्तुत रचना में आपने इस कथ्य को सुंदर ढंग से दर्शाय भाई विनय कुमार जी... इस बेहतरीन लघुकथा के लिए दिल से बधाई स्वीकार करे..

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 9, 2018 at 10:51pm

आपका एक और बेहतरीन सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार साहिब।

Comment by TEJ VEER SINGH on February 9, 2018 at 9:04pm

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।हृदय स्पर्शी लघुकथा।

Comment by Nita Kasar on February 9, 2018 at 9:02pm

 युवक का शौक़ ज़रूरी था ।ज़रूरत ने संवेदनाओं को ज़ब्त कर शौक़ को प्राथमिकता दी ।समय समय की बात है।उम्दा कथा के लिये बधाई आद० विनय  सिंह जी ।

Comment by विनय कुमार on February 9, 2018 at 6:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब 

Comment by Mohammed Arif on February 9, 2018 at 5:53pm

आदरणीय विनय कुमार जी आदाब,

                            अच्छी लघुकथा । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service