रंगों से सराबोर गीली साड़ियों से लिपटी कुछ ग्रामीण मज़दूर महिलायें टोली में गली से गुजरीं।
"उधर देखो और बताओ कि उनके अंग-अंग रंगीन हैं या वस्त्र?" एक रंगीन मिज़ाज पुरुष ने अपने साथी से कहा।
"वस्त्र गीले और रंगीन हैं और अंग सूखे और रंगहीन! समझ में नहीं आता तुम्हें?" साथी ने उसकी आंखों के सामने चुटकी बजाते हुए कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब और जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब।
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। कम शब्दों में अर्थपूर्ण लघुकथा लिखी आपने। बहुत बहुत बधाई। सादर
जनाब शेख़ शहज़ाद साहिब , छोटी मगर असरदार लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
मेरी इस ब्लॉग- पोस्ट पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब डॉ. विजय शंकर साहिब।
रचना आपको पसंद आई। रचना के संदेश सम्प्रेषित हो सके। आपके अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब श्याम नारायण वर्मा साहिब, जनाब समर कबीर साहिब और आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , बधाई, सादर।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,कम शब्दों में सशक्त प्रस्तुति,इस लघुकथा पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
गहन कटाक्ष| हार्दिक बधाई इस रचना के लिए|
नजर अपनी अपनी नज़रिया अपना अपना ।जाकी रही भावना जैसी ,गहन कटाक्ष करती कथा के लिये बधाई आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।
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