महाविद्यालयीन कक्षा में छात्रों के अनुरोध पर हिन्दी के शिक्षक उन्हें "भूल, ग़लती, और भूलना" शब्दों में अंतर समझाते हुए बोले - "भूतकाल में अज्ञानता वश किया गया कोई भी कार्य या क्रिया जिसके कारण वर्तमान या भविष्य में हानि उठानी पड़े 'भूल' कहलाती है! 'भूल' का हिन्दी में अर्थ होता है “गलती या दोष”; इस शब्द का इस्तेमाल अक्सर “चूक” शब्द के साथ किया जाता है!" कुछ उदाहरणों सहित समझाने के बाद शिक्षक ने छात्रों से कुछ और उदाहरण प्रस्तुत करने को कहा। 'भूल' पर कुछ जवाब यूं भी रहे :
"जैसे अमर शहीद तात्यांटोपे की मौत के कारणों में हुई भूल!"
"जैसे स्वतंत्रता सेनानी महारानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के पहले की भूल!"
दो छात्रों के उपरोक्त उत्तरों के बाद अगले छात्र ने जवाब में कहा :
"जैसे कि विभाजन के बाद मिले भारत में हिन्दू धार्मिक ग्रंथों और वेदों पर आधारित संविधान न बनाकर आजकल के नेताओं की तरह विदेशी चीजों के अध्ययन और नकल करके देश के संविधान निर्माण की भूल!"
इस पर एक और छात्र बोल पड़ा -"जम्मू-कश्मीर की बात भी तो कहो। राजा मानसिंह की भूल को वहां के लोग भोग रहे हैं या उस समय के बड़े नेताओं और भारत सरकार की!"
छात्रों के जवाबों में सवालों की बौछार थी। शिक्षक महोदय भौंचक्के रह गए। कक्षा समाप्ति पर दीवार पर टंगे भारत के मानचित्र की ओर देखते हुए वे छात्रों से बोले - "बेशक़! सच कहते हो तुम सभी। ऐसी बहुत सी भूलों वाले कड़वे सच ही हमारी वर्तमान समस्याओं के मूल हैं!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब।
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी जी सादर अभिवादन। बेहद विचारोउत्तेजक और प्रभाव छोड़ती लघुकथा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई
मेरी रचना के विषयांतर्गत बेहतरीन विवेचना और मार्गदर्शन के साथ मेरी इस लघुकथा के अनुमोदन के साथ मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब डॉ. विजय शंकर साहिब।
मेरी इस नवीन लघुकथा पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जनाब तेजवीर सिंह साहिब और जनाब सोमेश कुमार साहिब।
KYI GAMBHIR BHULON KO INGIT KRTI ACHCHI LGHUKTHA
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बेहतरीन लघुकथा।क्या गज़ब का विषय लिया है।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब , जबरदस्त लघु - कथा के लिए बधाई। हो सकता है इसे अन्य प्रस्तुतियों की तरह ही पढ़ कर लोग विस्मृत कर दें पर आपने इसमें जो उठाया है वह कदापि विस्मृत नहीं किया जा सकता है। वास्तव में जन- प्रतिनिधि ( या शासक ) होना एक बहुत ही गंभीर दायित्व का काम है , हमारे यहां वह मात्र अवसर और सौभाज्ञ बन कर रह गया है.ऊपर से सम्मान और ज्ञान का प्रतीक और पूज्यनीय बन कर रह गया है।लोग जिसे भी चुनते हैं उसे आदर्श और आराध्य मान लेते हैं , वह चाहे कितनी ही “भूल ” करे और करता रहे। जबकि उसका काम पूर्ण विवेकशील होकर बहुत दूरदर्शी होकर , भविष्य की अनेक पीढ़ियों के लिए सोचते हुए कोई निर्णय लेना होता है। उसकी एक छोटी सी भूल कितनी पीढ़ियों के लिए सजा बन जाती है , आकलन करना भी कठिन हो जाता है। खेद का विषय है कि आज अधिकाँश फैसले तात्कालिक और क्षणिक होते हैं , जैसे किसी तरह समस्या को निपटा दिया गया हो। देश, समाज के लिए दूरदर्शिता कहीं दूर दूर तक देखने को नहीं मिलती है। हाँ , यदि कहीं मिलती है तो मात्र अपने परिवार और वंशजों के लिए अनगिनत पीढ़ियों तक की व्यवस्था कर देने मात्र की मिलती है। ( कृपया ऊपर की लाइन , अवसर और सौभाज्ञ , यहां एक बार फिर पढ़ें ) . सादर।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,उम्दा लघुकथा हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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