आज भी मुहल्ले में मदारी के डमरू की धुन पर बंदर और रस्सी पर संतुलन बनाती बच्ची के खेल देख कर दर्शक तालियां बजाते रहे। फिर परंपरा के अनुसार कुछ पैसे फेंके गये। फिर भीड़ छंटने लगी। कुछ लोग चर्चा करने लगे :
"कितनी दया आ रही थी उस भूखे बंदर और भूखी कमज़ोर सी बच्ची को देख कर!" एक आदमी ने अपने साथी से कहा।
"हां, कितना ख़ुदग़र्ज़ और दुष्ट मदारी था वह!" साथी बोला।
"पहले तो खेल का मज़ा ले लिया और अब उन पर हमदर्दी जता रहे हो!" तीसरे आदमी ने बीच में आकर उन दोनों के कंधों पर हाथ रखकर कहा- "इसी तरह के खेल अपने देश के बड़े नेताओं और उद्योगपतियों के हैं। विदेशी तालियां बजाते और बजवाते हैं उनके विदेश आने या बुलवाये जाने पर। पैसे फेंक कर उद्योग और व्यापार के समझौते किए जाते हैं। खेल ख़त्म होने पर दया या कटाक्ष कर वे किनारे कर दिए जाते हैं, बस।"
"हां भाई, यही तो होता आया है और हो रहा है!" पहले आदमी ने पुरज़ोर समर्थन किया।
"कुछ सालों से तो भैया कुछ नये तरीकों से ये कुछ ज़्यादा ही हो रहा है!" दूसरे साथी के सुर भी मुखरित हुए, "खेल जारी है। नेता नाच रहे हैं! देसी भूखी जनता आंखों में पट्टी बांधे बंधी हुई रस्सी पर चल कर किसी तरह संतुलन बना रही है!"
"हां, दर्शक ग्लोबल हैं। जनता में न तो 'ग्लो' है और न ही 'बल' है! डमरू बजाते मदारी के झूठे भाषणों का 'फ्लो' है, बस!" तीसरे ने मज़ाक में तुकबंदी की। फिर सभी अपने-अपने रास्ते पर चल दिए। मदारी के डमरू के सुर मुहल्ले में अब भी गूंज रहे थे।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बढिया लघुकथा कही आपने। पर क्या नेता नाच रहे हैं या उनके इशारों पर हम निरीह जनता??? इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें
बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय उस्मानी जी!
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बढ़िया लघुकथा, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
अचानक कौंधी इस रचना पर समय देकर त्वरित प्रतिक्रिया, अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।आपकी लेखनी की प्रखरता इस लघुकथा में पूरे उफ़ान पर है।वाह, क्या गज़ब का कटाक्ष पूर्ण संदेश दिया है।एकदम नया विषय।आपने ग्लोबल का प्रयोग बहुत सुंदर तरीके से किया।पुनः बधाई।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
बेहद सशक्त , प्रासंगिक और कटाक्षपूर्ण लघुकथा । इशारों-इशारों में सबकुछ कह दिया है आपने । जैसा चित्रण आपने किया है आज देश में वैसा ही हो रहा है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
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