For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'मदारी अपने-पराये' (लघुकथा) :

आज भी मुहल्ले में  मदारी के डमरू की धुन पर बंदर और रस्सी पर संतुलन बनाती बच्ची के खेल देख कर दर्शक तालियां बजाते रहे। फिर परंपरा के अनुसार कुछ पैसे फेंके गये। फिर भीड़ छंटने लगी। कुछ लोग चर्चा करने लगे :

"कितनी दया आ रही थी उस भूखे बंदर और भूखी कमज़ोर सी बच्ची को देख कर!" एक आदमी ने अपने साथी से कहा।
"हां, कितना ख़ुदग़र्ज़ और दुष्ट मदारी था वह!" साथी बोला।
"पहले तो खेल का मज़ा ले लिया और अब उन पर हमदर्दी जता रहे हो!" तीसरे आदमी ने बीच में आकर उन दोनों के कंधों पर हाथ रखकर कहा- "इसी तरह के खेल अपने देश के बड़े नेताओं और उद्योगपतियों के हैं। विदेशी तालियां बजाते और बजवाते हैं उनके विदेश आने या बुलवाये जाने पर। पैसे फेंक कर उद्योग और व्यापार के समझौते किए जाते हैं। खेल ख़त्म होने पर दया या कटाक्ष कर वे किनारे कर दिए जाते हैं, बस।"
"हां भाई, यही तो होता आया है और हो रहा है!" पहले आदमी ने पुरज़ोर समर्थन किया।
"कुछ सालों से तो भैया कुछ नये तरीकों से ये कुछ ज़्यादा ही हो रहा है!" दूसरे साथी के सुर भी मुखरित हुए, "खेल जारी है। नेता नाच रहे हैं! देसी भूखी जनता आंखों में पट्टी बांधे बंधी हुई रस्सी पर चल कर किसी तरह संतुलन बना रही है!"
"हां, दर्शक ग्लोबल हैं। जनता में न तो 'ग्लो' है और न ही 'बल' है! डमरू बजाते मदारी के झूठे भाषणों का 'फ्लो' है, बस!" तीसरे ने मज़ाक में तुकबंदी की। फिर सभी अपने-अपने रास्ते पर चल दिए। मदारी के डमरू के सुर मुहल्ले में अब भी गूंज रहे थे।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 588

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on March 8, 2018 at 1:32pm

आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बढिया लघुकथा कही आपने। पर क्या नेता नाच रहे हैं या उनके इशारों पर हम निरीह जनता??? इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें

Comment by Rahila on March 8, 2018 at 12:57pm

बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय उस्मानी जी!

Comment by Samar kabeer on March 6, 2018 at 9:56pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बढ़िया लघुकथा, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by SALIM RAZA REWA on March 6, 2018 at 9:14pm
जनाब उस्मानी साहब,
ख़ूबसूरत लघुकथा हुई है मुबारक़बाद कुबूल फरमाएं,
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 6, 2018 at 6:06pm

अचानक कौंधी इस रचना पर समय देकर त्वरित प्रतिक्रिया,  अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब तेजवीर सिंह साहिब। 

Comment by TEJ VEER SINGH on March 6, 2018 at 9:20am

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।आपकी लेखनी की प्रखरता इस लघुकथा में पूरे उफ़ान पर है।वाह, क्या गज़ब का कटाक्ष पूर्ण संदेश दिया है।एकदम नया विषय।आपने ग्लोबल का प्रयोग बहुत सुंदर तरीके से किया।पुनः बधाई।

Comment by Mohammed Arif on March 6, 2018 at 7:47am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                        बेहद सशक्त , प्रासंगिक और कटाक्षपूर्ण लघुकथा । इशारों-इशारों में सबकुछ कह दिया है आपने । जैसा चित्रण आपने किया है आज देश में वैसा ही हो रहा है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
16 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service