अलमारी में रखे शब्दकोष के पन्ने अचानक फड़फड़ाने लगे । हो सकता है ये उनके अंदर की बेचैनी या घबराहट हो । " सहिष्णुता " शब्द ने "संस्कार " से अपनी व्यथा बताते हुए कहा -" मेरे अर्थ को लोग भूल से गए हैं । मैं उपेक्षित जीवन जी रहा हूँ । मेरे मर्म को कोई जानना नहीं चाहता । बुरा तो तब और लगता है जब मेरे आगे "अ" जोड़कर " असहिष्णुता " बनाकर देश में बवाल मचाया जा रहा है ।"
" सच कहती हो " सहिष्णुता" बहना । मेरी भी हालत अनाथों की तरह हो गई है । कोई मुझे अपनाने को तैयार ही नहीं है ।" "संस्कार "बोला ।
दोनों के वार्तालाप को सुन " देशभक्ति " पीड़ा से कराहती हुई बोली -" मेरी हालत तो और भी ख़राब है । आज़ादी के आंदोलनों में साध्य थी मगर आजकल मैं साधन बनकर रह गई हूँ .......।" इतना कहना ही था कि अचानक ज़ोर-ज़ोर से उत्तेजक नारों की आवाज़ें सुनाई दी । शायद दंगाई थे । देखते ही देखते उन्होने आगजनी शुरू कर दी । शब्दकोष भी चपेट में आ गया । " सहिष्णुता " , " संस्कार " और " देशभक्ति " को जलता देख पन्ने पर जलने से बची "हिंसा " रावणी हँसी हँस रही थी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Comment
आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब , वाकई आपकी टिप्पणी से मेरा संबल दुगुना हो गया है । आपकी टिप्पणी। ही इस लघुकथा की सफलता को प्रदर्शित करती है । लघुकथा के अनुमोदन और उत्सासवर्धन का बहुत-बहुत दिली शुक्रिया ।
आपकी त्वरित टिप्पणी पाकर आश्चर्यचकित हूँ । लघुकथा के अनुमोदन और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
अद्भुत और विस्मयकारी टिप्पणी पाकर धन्य हो गया । यह टिप्पणी न होकर इस लघुकथा पर सफल लघुकथा होने की मोहर है । मेरा लेखन सफल हो गया । हृदयतल से बहुत-बहुत हार्दिक आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी ।
वाह बेहद उम्दा लघुकथा बहुत बहुत बधाई हो जी। सादर नमन।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब, हमेशा की तरह एक शानदार और नायाब लघुकथा,बहुत ख़ूब वाह क्या कहने,बहुत ही सधी हुई,उम्दा कथानक,बहतरीन शिल्प,इस प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
सही समय पर दस्तक देती उत्कृष्ट लेखनी ! तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब इस बेहतरीन प्रतीकात्मक विचारोत्तेजक सृजन के लिए।
आखरी वाक्यांश में कुछ स्पष्टता बढ़ाई जा सकती है मेरे विचार से।
// पन्ने पर जलने से बची "हिंसा " रावणी हँसी हँस रही थी ।// .. को यदि इस तरह कहें, तो? :
=// जलने से बचे अपने पन्ने पर "हिंसा" तो रावण माफ़िक हँस रही थी ।// मार्गदर्शन निवेदित।
वाह! वाह! वाह! बहुत ही शानदार लघुकथा बनी है । कल्पना की पराकाष्ठा । / अलमारी में रखे शब्दकोष के पन्ने अचानक फड़फड़ाने लगे ।/ लघुकथा की शुरूआत भी बहुत ही सधे ढंग से हुई है ।हार्दिक बधाई स्वीकारें आरिफ भाई जी!
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