उनके बंगले के बाहर आज फिर उनके दीवानों, प्रशंसकों और पत्रकारों की ग़ज़ब की भीड़ लगी हुई थी। एक वरिष्ठ पत्रकार को उनसे रूबरू होने का मौक़ा मिला। बातचीत शुरू हुई :
"बहुत-बहुत मुबारक हो आपकी एक और जीत !" पत्रकार ने अभिवादन करते हुए कहा - "अस्पताल से लौट कर अब कैसा महसूस कर रहे हैं?"
"चिकित्सकों की कर्मभूमि से अपनी कर्मभूमि पर जाने के लिए फिर से तैयार हूं!" उन्होंने अपनी चिर-परिचित जोशीली आवाज़ में पत्रकार को जवाब देते हुए कहा - "बचपन से ही सिर पर है अल्लाह का हाथ इस अल्लारक्खा पर और ख़ुदा गवाह है कि आप सब की दुआओं का रहा है हमेशा साथ!"
"सुना है कि आप बहुत तक़लीफें उठाते हुए इस उम्र में भी कमज़ोर लीवर और बीमारी को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने देते!"
"ज़िन्दगी एक इम्तिहान है! हौसला चाहिए, हौसला! फिर जीत अपनी और हार बीमारी की! हिम्मत का फ़ौलाद है मेरे पास!" उन्होंने फिर अपनी चिर-परिचित संवाद अदायगी के साथ कहा - "मेरे साथ लोगों की दुआयें हैं, तो काम करने का जुनून भी है! ज़िन्दगी के कर्मपथ पर मैं कभी हार नहीं मानता!"
"कुछ सालों से तो यही हो रहा है कि आपका एक पैर अस्पताल में होता है, तो दूसरा आपकी कर्मभूमि पर!" पत्रकार ने उनके अद्भुत बेमिसाल आत्मविश्वास को देखते हुए कहा।
"अस्पताल में जन्म के समय भी चीखें, चीत्कार सुना था; संघर्ष किया था इस दुनिया की कर्मभूमि में आने के लिए। तो जाते समय भी वही सुनना और देखना है! मैं जिंदगी के अग्निपथ पर हार नहीं मानता!"
"आपका यही जज़्बा हमें प्रेरणा देता है एक लोकप्रिय फ़िल्मी गाने की तरह ; 'मंज़िलें अपनी जगह हैं, रास्ते अपनी जगह! अगर क़दम साथ न दें, तो मुसाफ़िर क्या करें'?" पत्रकार ने उनके ही विशेष अंदाज़ में कहा और फिर बोला- "अच्छा, अंत में यह बताइए कि आज देश के जो हालात हैं, ऐसे में युवाओं में किस तरह की देशभक्ति होनी चाहिए?"
"लो कर लो बात! भाईसाहब! हमारे युवाओं में तो ऐसी देशभक्ति है कि दे केन लीव ऐनी समस्या बिहाइंड!" एक फ़िल्म के संवाद की तर्ज़ पर, उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा और ज़ोर से हंस पड़े।
" युवाओं के लिए, आपके फैन्स के लिए कोई संदेश देना चाहेंगे?" पत्रकार ने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा :
"ग़रीबी, बेरोज़गारी; बीमारी और मुसीबतें आपको उतना नहीं ठगतीं, जितना कि इस मुल्क के और इस दुनिया के ठग आपको ठगते रहते हैं!"
एक मर्द का यह दर्द सुनकर पत्रकार नि:शब्द रह गया।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी इस महत्वपूर्ण प्रयास वाली प्रयोगात्मक रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के साथ अपनी राय देने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब समर कबीर साहिब और आदरणीया अनामिका सिंह'अना' जी।
aisa lga AMITABAH G KA INTERVIEW LENE PHUCH GYE HAIN AAP. UNKI FILM K SHIRSHK EVM UNKI SNGHRSHSHILTA KO EXAMPLE BNA KR ACHCHI LGHUKTHA LIKHI. MUBARKA
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी..लघुकथा का कथानक आज के परिदृश्य पर सटीक है..सच्चाई को उजागर करती हुई बेहतरीन लघुकथा हुई है , सादर l
बहुत ही सुंदर लघु कथा आदणीय । सच की छूती हुई । बधाई ।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, बहुत ही अच्छी लघुकथा । प्रस्तुति के लिए बधाई ।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी आदाब,
ग़रीबी , बेरोज़गारी , मुसीबतें और बीमारी जितनी नहीं ठगती उससे ज़ियादा ठगते हैं इस देश के ठग , सच कहा आपने । लघुकथा का मूल कथानक भी यही.है और आज पूरे मुल्क की पटकथा का मूल कथानक भी यही है । ठगों के रोज़ नये-नये संस्करण सामने आ रहे हैं । फिल्मी संवाद और गीत की पंक्तियों को लघुकथा में डालकर अच्छा प्रयोग किया । इससे लघुकथा में सशक्तता आ गई है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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