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मानवेतर कथा/लघुकथा (अतुकान्त कविता)

मानव से इतर
तीतर-बीतर
कौए-कबूतर
शेर-चूहे
सपना-परिकल्पना
कछुआ-खरग़ोश
होश-बेहोश
जड़-चेतन, मूर्त-अमूर्त
भूत प्रेत-एलिअन
जिनके
सजीव-निर्जीव पात्र
मानवीय आचरण में
सज्जन-दुर्जन
मानव-संवाद
तंज/कटाक्ष
यथार्थ सी कल्पना
प्रतीकात्मक
बिम्बात्मक
बोधात्मक
सार्थक सर्जना
व्यंजना-रंजना
कल्पना-लोक-भ्रमण
सार्थक
मानवेतर
कथा या हो लघुकथा सृजन!

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 31, 2018 at 12:13am

बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सोमेश कुमार जी और बृजेश कुमार 'ब्रज'  जी।

लघुकथा लेखन की एक विधा है "मानवेतर" शैली! जिसमें मूर्त-अमूर्त या पशु--पक्षी/निर्जीव चीजों के मानवीकरण या बिम्बों में कोई लघुकथा‌ कही जाती है किसी तंज/कटाक्ष/शिक्षा/ बोध हेतु। सादर।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 31, 2018 at 12:07am

आदाब।

तीतर (पक्षी) बीतर---(मात्र तुकबंदी , यहां कबूतर लिख सकते थे)  तुकबंदी वाले किसी और पक्षी/पशु.. का नाम सुझाइये!

Comment by somesh kumar on March 30, 2018 at 10:51am

ब्लॉग स्पॉट में शीर्षक पढ़कर पहले तो उलझन हुई की आखिर यह कौन सी रचना है पर पढ़कर ज्ञात हुआ की मानवजीवन के साहित्यिक पक्षों को बिबों और प्रतीकों के जरिए पहचानने का प्रयास किया गया है |

अच्छी रचना है |मुबारकबाद कबूल करें |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 29, 2018 at 8:51pm

उम्दा कविता हुई आदरणीय..

Comment by Samar kabeer on March 29, 2018 at 5:37pm

पक्षी केलिए 'तीतर' और "बीतर"?

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 29, 2018 at 3:15pm

बिल्कुल सही कहा है आपने। बहुत-बहु शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब। पक्षी के लिए 'तीतर' शब्द लिया है प्रतीकात्मक रचना के लिए! 

Comment by Samar kabeer on March 29, 2018 at 3:01pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा अतुकान्त कविता,शब्दों का खेल,ग़ज़ल हो या कविता या लघुकथा,सब शब्दों का खेल ही तो है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

दूसरी पंक्ति में 'तीतर-बीतर' को "तितर बितर" कर लें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 29, 2018 at 2:41pm

इतने ग़ौर से रचना को पढ़ने और अनुमोदन के साथ हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।

Comment by Mohammed Arif on March 29, 2018 at 8:05am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                        बहुत ही शानदार , प्रभावोत्पादक और सशक्त कविता । शब्द विन्यास क्या ख़ूब ढूँढकर लाएँ हैं आप । शब्दों का क्रमश: उचित चयन काबिले तारीफ है और साथ ही साथ कविता में पीछा करता कटाक्ष भी । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

                                              आज सुबह एक अच्छी रचना पढ़ने को मिली ।

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