स्वप्निल यथार्थ....
जब प्रतीक्षा की राहों में
सांझ उतरे
पलकों के गाँव में
कोई स्वप्न
दस्तक दे
कोई अजनबी गंध
हृदय कंदरा को
सुवासित कर जाए
कोई अंतस में
मेघ सा बरस जाए
उस वक़्त
ऐ सांझ
तुम ठहर जाना
मेरी प्रतीक्षा चुनर के
अवगुंठन के
हर भ्रम को
हर जाना
मेरे स्वप्न को
यथार्थ कर जाना
मेरे स्वप्निल यथार्थ को
अमर कर जाना
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani साहिब, आदाब.....सृजन को अपनी स्नेहिल प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार।
शुभ दिवस की संध्या पर सपने को यथार्थ कर जाना और यथार्थ को अमर कर जाना ..!! वाह। अद्भुत सम्प्रेषण। अद्भुत आह्वान/इरादे। बेहतरीन सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सुशील सरना जी।
आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहिब, आदाब .... प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय विजय निकोर जी सृजन को अपनी स्नेहिल प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार।
आदरणीया प्रतिभा पांडेय जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब .... अपनी उत्साहवर्धक एवं प्रेरक प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ाने का दिल से आभार।
आदरणीय हर्ष महाजन जी सृजन को आत्मीय स्नेह देने का दिल से आभार।
जनाब सुशील सरना साहिब ,स्वप्न पर आधारित ज़बरदस्त कविता हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
मेरे स्वप्न को
यथार्थ कर जाना
मेरे स्वप्निल यथार्थ को
अमर कर जाना// खूबसूरत पंक्तियाँ ... हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी
जनाब सुशील सरना जी आदाब,हमेशा की तरह सशक्त रचना,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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