गर बनाना चाहते हो विकसित
वतन तो करनी होगी मेहनत ।
धरम जाति की दूर करो नफरत
सब आज मिलकर संवार लो किस्मत ।
मजदूर गरीब की किस्मत खोटी
प्रजातन्त्र में भी मिलती न रोटी ।
मरता किसान फसल हुई खोटी
घर में न अन्न कैसे बने रोटी ।
कर्ज में कृषक सरकार है सोती
ललित विदेश में चुन रहा मोती ।
अज्ञान है मिटाना करो सुनिश्चित
हर बालक हो आज करो सुशिक्षित ।
बज गया बिगुल जंग होना बाकी
खत्म हुइ रात सुबह होना बाकी ।
समता समाज में आना बाकी
गरीब के घर प्रकाश है बाकी ।
हम सबकी कोशिसे रंग लाएगी
अज्ञान गंदगी साफ हो जाएगी ।
घर का हर बच्चा जब पढ़ जाएगा
जुल्म का हर वो सितम मिट जाएगा ।
मंज़िल दूर है पर प्रयास जारी
हमने सहा सब अब तुम्हारी बारी ।
अस्तीन में पलते कुछ साँप भाई
कब धोखा दे पता नहीं भाई ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद0 रामाश्रय जी सादर अभिवादन। बढिया रचना का प्रयास पर कुछ विराम और वर्तनीगत अशुद्धियों से रचना थोड़ी कमतर हो रही है। मात्राविधान भी मैं समझ नहीं पाया। इस प्रस्तुति पर बधाई आपको
आ.भाई राम आसरे जी, सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
अच्छी रचना है आदरणीय..बधाई
आदरणीय राम आश्रेय जी आदाब,
आशा, विश्वास और उम्मीद का अलख जगाती बेहतरीन कविता । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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