निर्मोही रिश्ते ...
भावों की ज़मीन को
करते हैं बंजर
बंजारे से
ये
आजकल के
निर्मोही रिश्ते
जीवन को
मृत्यु का
कफ़न पहनाते
ये
आजकल के
निर्मोही रिश्ते
अपनी ही कोख़ से
अनजान बनते
ये
आजकल के
निर्मोही रिश्ते
कितना अजीब लगता है
जब
मृत रिश्तों को
कांधा देते
ले जाते हैं
दुनियावी सड़क से
मरघट तक
ये मृत केंचुली में
स्वांग रचाते
ज़िंदा
निर्मोही रिश्ते
सच
रिश्तों के कांधों पर
रिश्तों की लाशें
ढोते हैं
ये
आजकल के
निर्मोही रिश्ते
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सोमेश कुमार जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब , ... अपने चिर परिचित अंदाज़ में सृजन के भावों को अपने आशीर्वाद से अलंकृत करने का दिल से आभार।
आदरणीय वीरेन्दर वीर मेंता जी सृजन के भावों की आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय तेज वीर सिंह जी सृजन आपकी मधुर सराहना का आभारी है।
आदरणीय मो.आरिफ साहिब , आदाब ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
निर्मोही रिश्तों पर मोहक रचना |
जनाब सुशील सरना जी आदाब, रिश्तों के बदलते अंदाज़ को अपनी कविता में बहुत उम्दा तरीक़े से बयान किया है आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत सुन्दर. आदरणीय सुशील सरना जी, आजकल के निर्मोही रिश्तों की कितनी उम्दा व्याख्या की है आपने. सच में दिल को छूती लाजवाब रचना। हार्दिक बधाई स्वीकार करें भाई जी
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी। बेहतरीन कविता।
आधरणीय सुशील सरना जी आदाब,
रिश्तों को केंद्र में रखकर रची गई बहुत ही लाजवाब रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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