22 22 22 22
मूर्खों का सम्मेलन हो फिर,
बीतीं बातें,चिंतन हो फिर।1
उम्र हुई तो क्या होता है
सुन्नत,चाहे मुंडन हो फिर।2
अपने तर्क उठाते रहिये
औरों का बस खंडन हो फिर।3
जात-धरम अवसाद हुए कब?
मुँहदेखी हो,मंडन हो फिर।4
भाषा,भनिति अबला जैसी
नाच नचा लें,ठन-ठन हो फिर।5
पीठ नहीं पूजी जाये तो
चलते-फिरते अनबन हो फिर।6
पढ़ने से परहेज भला है
मतलब कुछ हो, लेखन हो फिर।7
नंग-धड़ंग चुहलबाजी हो,
अपनी दुनिया लंदन हो फिर।8
हो लें आज पुरस्कारी तो
वाणी अपनी खन खन हो फिर।9
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
गज़ल अच्छी लगी। हार्दिक बधाई।
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर जी,नमन।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
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