२१२२ /११२२ /११२२ /२२
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पार करने हैं समुन्दर ये दिलो-जाँ वाले
और आसार नज़र आते हैं तूफाँ वाले.
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फ़ितरतन मुश्किलें; मुश्किल मुझे लगती हीं नहीं
पर डराते हैं सवाल आप के आसाँ वाले.
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तितलियाँ फूल चमन सारे कशाकश में हैं
एक ही रँग के गुल चाहें गुलिस्ताँ वाले.
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ये न कहते कि रखो एक ही रब पर ईमाँ
इश्क़ करते जो अगर गीता-ओ-कुरआँ वाले.
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जानवर हैं कई, इंसान की सूरत में यहाँ
शह्र में रह के भी हैं तौर बयाबाँ वाले.
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आप चेहरे से तो इंसान नज़र आते हैं
आप के ढब नहीं लगते मगर इंसाँ वाले.
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‘नूर’ पर दाग़ लगाने कि तमन्ना है जिन्हें
वो मेरे यार हैं शफ़्फ़ाफ़ गरेबाँ वाले.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आ. दिनेश जी,
अभी कोई चुनाव नहीं हैं इसलिए थोडा समय ग़ज़ल को दे पा रहा हूँ वरना मुझ पे लाज़िम है कि अपना पूरा समय सामाजिक न्याय की लड़ाई में दूँ... ज्यादतियों का विरोध करूँ...
साहित्यकार सत्ता के चरणों में नतमस्तक हो जाय तो भाट कहलाता है
सादर
आप पुनः form में आ गए हैं आ. निलेश सर। मतले स मक़्ते तक सभी अशआर पर दिल से वाह निकली है। मुबारक बाद सर।
धन्यवाद आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहब
आभार
बेहतरीन बहुआयामी संदेश देते मतले और मक़्ते के साथ बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार आदरणीय नीलेश शेव्गांवकर जी।
शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ साहब,
आप की टिप्पणी से हौसला दोगुना हो गया है, अच्छा रचने का प्रयास आगे भी रहेगा
सादर
धन्यवाद आ. हर्ष जी,
आप की टिप्पणी हर्षदायक है
सादर
शुक्रिया आ. समर सर,
आप के स्नेह से संबल मिला है ..
आसां वाले पर अभी मैं स्वयं ही निश्चित नहीं हूँ कि काफिया निभा है या नहीं...
शायद समय के साथ कुछ बने ..
सादर
आदरणीय नीलेश जी आदाब,
लाजवाब और आकर्षित करने वाली ग़ज़ल । हर शे'र माकूल । अबतक की आपकी सबसे अच्छी ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
आदरणीय नीलेश जी बहुत ही उम्दा दिली दाद सर ।
"आप चेहरे से तो इंसान नज़र आते हैं
आप के ढब नहीं लगते मगर इंसाँ वाले"
बेहतरीन सर ।
सादर !
जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,वाह वाह, क्या ख़ूब ग़ज़ल कही आपने,मज़ा आ गया,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
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