For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत- चल दिया लेकर तगारी -बसंत

चल दिया लेकर तगारी

© बसंत कुमार शर्मा

 

सिर्फ रोटी के लिए बस,

खट रही है उम्र सारी.

सूर्य निकला भी नहीं, वह,

चल दिया लेकर तगारी.

 

ठण्ड, बारिश, धूप तीखी,

वार सारे सह रहा है.

और उसका खून ही तो,

बन पसीना बह रहा है.

 

ढक गया नीचे बदन कुछ,

देह ऊपर है उघारी.

 

हड्डियों का एक ढाँचा,

लग रहा जैसे बिजूका.

झेलता है आदमी यह,

जेठ में लू के भभूका.

 

रात दिन जोती धरा, पर

पट न पायी है उधारी.

 

चाल टेढ़ी है ग्रहों की,

भय उसे पंडित दिखाते

रोज साहूकार अपना,

रौब घर आकर जमाते.

 

जन्म से सुनता रहा है,

बँट रही इमदाद भारी.

"मौलिक एवं अप्रकाशित "

Views: 662

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 16, 2018 at 4:04pm

आदरणीय  Neelam Upadhyaya जी आपका तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 16, 2018 at 4:04pm

आदरणीय Ajay Kumar Sharma जी आपका तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by Neelam Upadhyaya on April 16, 2018 at 10:46am

आदरणीय अजय तिवारी जी, बहुत ही सुंदर रचना । बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ajay Kumar Sharma on April 14, 2018 at 8:55pm

बहुत सुन्दर रचना.

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 14, 2018 at 8:46pm

आदरणीय  Ajay Tiwari जी आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by Ajay Tiwari on April 14, 2018 at 5:05pm

आदरणीय बसंत जी, एक और अच्छे नवगीत के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 14, 2018 at 11:58am

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी आपके अनुकरणीय सुझावों से मुग्ध हूँ, बहुत सुंदर , इसी तरह स्नेह बनाये रखें सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 14, 2018 at 11:20am

आ. बसंत जी,
एक के बाद एक सुंदर गीत पेश करने के लिए बधाई ..
कई पंक्तियों में ही भर्ती का है.. पहली पंक्ति में मात्र रोटी में र-र आपस में टकरा रहे हैं 

सिर्फ रोटी के लिए बस ,

खट रही है उम्र सारी.
.

और उसका खून ही तो 

बन पसीना बह रहा है.

.
भय उसे पण्डित दिखाते 
.
रौब घर आकर जमाते 
.
जन्म से सुनता रहा है ,
.
कुछ सुझाव   हैं, आग्रह नहीं है ..
सादर 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 14, 2018 at 10:21am

आदरणीय Samar kabeer जी आभार आपका, मैं कुछ करता हूँ 

Comment by Samar kabeer on April 14, 2018 at 10:17am

'बता पंडित डराते' 12 मात्रा

'रौब घर आकर दिखाते' 14 मात्रा,

इस हिसाब से यूँ होना चाहिये:- "ये बता पंडित डराते'"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service