क्षीर सागर में ‘नारायण –नारायण’ की आवाज गूँज उठी . भगवान विष्णु ने स्वागत करते हुए कहा- ‘आइये मुनिवर ! क्षीरोदधि में आपका स्वागत है .’
‘भगवन कुछ चिंतित हैं ?’ नारद ने वीणा को हाथ में संभाला.
‘एक चिरंतन समस्या है, मुनिवर’ - भगवान ने उत्तर दिया .
‘समस्या और आपके सम्मुख ---? क्यों परिहास करते हैं प्रभु”
‘परिहास नही है मुने! दुर्निवार समस्या है.
‘वह क्या प्रभो ?’
‘तुमने इंडियन टिपिकल सास के बारे में तो सुना होगा.’
‘हाँ हाँ प्रभो ---‘- नारद ने हँसते हुए कहा.
‘ये सब एक ही वर मांगती हैं कि बहू बेटे के वश में रहे और बेटा माँ के वश में रहे‘
‘इसमें समस्या क्या है ?
‘समस्या यह है कि तुम्हारी माता लक्ष्मी इससे सहमत नही हैं ‘
‘माता क्या चाहती हैं प्रभो ?’
‘लक्ष्मी का कहना है ऐसी उद्धत सासों की नाक में नकेल पड़नी ही चाहिए’
‘अर्थात ---?’
‘अर्थात वह चाहती हैं कि बेटे को बहू के वश में होना चाहिए. इससे सास की नाक में अपने आप ही नकेल लग जायेगी ‘
‘ठीक तो है, इसमें समस्या क्या है ?’
‘ब्रह्मर्षि तुमने सर्वशक्तिमान त्रिदेवों की अवस्था के बारे में नही सोचा ‘- भगवान ने व्यथित होकर कहा.
‘ओह ---------‘ नारद के हाथ से वीणा छूट गयी .
‘पर आपके पास विकल्प भी नही है प्रभो ‘ इतना कहकर नारद अंतर्धान हो गए.
(मौलिक/अप्रकाशित)
Comment
वाह ! एक सत्य को उजागर करती सार्थक लघुकथा | बधाई आदरणीय |
आ. डॉ गोपाल जी,
आधी आबादी की पीड़ा का मार्मिक चित्रण करने लिए बधाई
;)))))
सादर
आदरणीय डा साहब हलके फुल्के अंदाज में बड़ी अच्छी लघुकथा रची है...सादर
आदरणीय गोपाल सर ..बहुत पसंद आई आपकी यह समर्थ लघु कथा...रचन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
जनाब डॉ.गोपाल नारायण जी आदाब,बढ़िया लघुकथा लिखी,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत ही सुन्दर लघु कथा। हार्दिक बधाई, भाई गोपाल नारायन जी... आपकी कलम बहुत ही अच्छी है।
हार्दिक बधाई आदरणीय , बेहतरीन लघुकथा हुई है|
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी। क्या दूर की कौड़ी ढूंढ कर निकाली है। बेहतरीन लघुकथा।
इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीय |
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