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बहुत आसाँ है दुनिया में किसी का प्यार पा लेना,
बहुत मुश्किल है ऐबों को मगर उस के निभा लेना.
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नज़र मिलते ही उस का झेंप कर नज़रें चुरा लेना,
मचलती मौज का जैसे किसी साहिल को पा लेना.
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बहुत वादे वो करता है मगर सब तोड़ देता है,
ये दावा भी उसी का है कि मुझ को आज़मा लेना.
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मलंगों सी तबीयत है सो अपनी धुन में रहता हूँ
पिये हैं रौशनी के जाम फिर ग़ैरों से क्या लेना.
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मिलन होगा मुकम्मल जब मिलेगी बूँद सागर से
उस इक पल दरमियाँ से तुम बदन अपना हटा लेना.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी
धन्यवाद आ. हर्ष जी
धन्यवाद आ. बृजेश जी
आ. भाई नीलेश जी, बेहतरीन गजल हुई है , हार्दिक बधाई।
वाह आदरणीय नूर साहब दिल को छू गयी आपकी पेशकश ।
आपने जो मतला पेश किया है :
"बहुत आसाँ है दुनिया में किसी का प्यार पा लेना,
बहुत मुश्किल है ऐबों को मगर उस के निभा लेना."
इस शेर पर मुझे असल रिश्ते को संभाल के रखने का फार्मूला याद आ गया ।जिसमें हम कहा करते थे कि दोस्ती में पॉज़िटिव और नेगेटिव सब अपनाओ तभी रिश्ता ठीक रहता है ।
हर सगर उम्दा ।
दाद ।
सादर ।
वाह आदरणीय नीलेश जी खूबसूरत ग़ज़ल कही...लेकिन प्यार पा लेना इतना भी आसान नहीं है...सिर्फ मजाक में लें।
धन्यवाद आ. श्याम जी
धन्यवाद आ. डॉ आशुतोष जी
बहुत खूबसूरत अशआर ...दिल से बधाई |
आदरणीय भाई निलेश जी आजकल एक के बाद एक उम्दा ग़ज़लें पढने को मिल रही हैं ..रचना पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर
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