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हमारा घर कोई सहरा नहीं था

उजाले का वहाँ पहरा नहीं था ।
कभी सूरज जहाँ ढलता नहीं था ।।1

बहा ले जाए तुमको साथ अपने ।
वो सावन का कोई दरिया नहींथा।।2

मेरे महबूब की महफ़िल सजी थी ।
मगर मेरा कोई चर्चा नहीं था ।।3

मैं देता दिल भला कैसे बताएं ।
सही कुछ आपका लहज़ा नहीं था ।।4

जरा सा ही बरस जाते ऐ बादल ।
हमारा घर कोई सहरा नहीं था ।।5

जले हैं ख्वाब कैसे आपके सब ।
धुंआ घर से कभी उठता नहीं था ।।6

तुम्हारी हरकतें कहने लगीं थीं।
तुम्हारा प्यार तो सच्चा नहीं था ।।7

बयाँ गम कर गया फितरत थी उसकी ।
जो आंसू आँख में ठहरा नहीं था ।।8

सुना हूँ आजकल वो पढ़ रहा है ।
मेरे चेहरे को जो पढता नहीं था ।।9

जरूरत पर हुआ है मुन्तजिर वो ।
हमारे दर पे जो रुकता नहीं था ।। 10

नया है तज्रिबा मेरा भी यारों ।
कभी मैं इश्क़ में उलझा नहीं था ।।11

ख़फ़ा है वह हमारी आरजू से ।
जो हमसे आज तक रूठा नहीं था ।।12

बता देते मुहब्बत गैर से है ।
हमारा आपसे पर्दा नहीं था ।।13

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 8, 2018 at 10:14am

आ. भाई नवीन जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 7, 2018 at 6:09pm

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ आभार।

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 7, 2018 at 6:08pm

आ0 रवि शुक्ल जी आभार । क्या सुना हूँ को सुना है कर दूँ । थोड़ा क्लीयर कर ने की कृपा करें ।

Comment by Ravi Shukla on May 7, 2018 at 6:03pm

आदरणीय नवीन मणि जी अच्छी ग़ज़ल कही आपने मुबारकबाद पेश करता हूं नवे शेर ऊला मिसरा देखियेगा (सुना हूँ ) पर दोबारा विचार करने की जरूरत है

Comment by Samar kabeer on May 7, 2018 at 5:56pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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