उजाले का वहाँ पहरा नहीं था ।
कभी सूरज जहाँ ढलता नहीं था ।।1
बहा ले जाए तुमको साथ अपने ।
वो सावन का कोई दरिया नहींथा।।2
मेरे महबूब की महफ़िल सजी थी ।
मगर मेरा कोई चर्चा नहीं था ।।3
मैं देता दिल भला कैसे बताएं ।
सही कुछ आपका लहज़ा नहीं था ।।4
जरा सा ही बरस जाते ऐ बादल ।
हमारा घर कोई सहरा नहीं था ।।5
जले हैं ख्वाब कैसे आपके सब ।
धुंआ घर से कभी उठता नहीं था ।।6
तुम्हारी हरकतें कहने लगीं थीं।
तुम्हारा प्यार तो सच्चा नहीं था ।।7
बयाँ गम कर गया फितरत थी उसकी ।
जो आंसू आँख में ठहरा नहीं था ।।8
सुना हूँ आजकल वो पढ़ रहा है ।
मेरे चेहरे को जो पढता नहीं था ।।9
जरूरत पर हुआ है मुन्तजिर वो ।
हमारे दर पे जो रुकता नहीं था ।। 10
नया है तज्रिबा मेरा भी यारों ।
कभी मैं इश्क़ में उलझा नहीं था ।।11
ख़फ़ा है वह हमारी आरजू से ।
जो हमसे आज तक रूठा नहीं था ।।12
बता देते मुहब्बत गैर से है ।
हमारा आपसे पर्दा नहीं था ।।13
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ. भाई नवीन जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ आभार।
आ0 रवि शुक्ल जी आभार । क्या सुना हूँ को सुना है कर दूँ । थोड़ा क्लीयर कर ने की कृपा करें ।
आदरणीय नवीन मणि जी अच्छी ग़ज़ल कही आपने मुबारकबाद पेश करता हूं नवे शेर ऊला मिसरा देखियेगा (सुना हूँ ) पर दोबारा विचार करने की जरूरत है
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
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