For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'ग़ज़ल कहने जो बैठोगे तो नानी याद आएगी'

(चौथे शैर में तक़ाबल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ करे)

नसीहत जो बुज़ुर्गों की न मानी याद आएगी

हमें ता उम्र उनकी सरगरानी याद आएगी

मियाँ मश्क़-ए-सुख़न कर लो नहीं ये खेल बच्चों का

ग़ज़ल कहने जो बैठोगे तो नानी याद आएगी

ज़माने भर की आसाइश के जब सामाँ बहम होंगे

तुझे माँ-बाप की क्या जाँ फ़िशानी याद आएगी

जुड़ी होंगी मज़ालिम की बहुत सी दास्तानें भी

हवेली गाँव की जब ख़ानदानी याद आएगी

क़वाफ़ी जब भी आएँगे ग़ज़ल में ज़िन्दगानी के

मुझे तब "नूर"की वो 'कूड़ेदानी' याद आएगी

----

सरगरानी--नाराज़गी

मश्क़-ए-सुख़न--ग़ज़ल अभ्यास

आसाइश--आराम

जाँ फ़िशानी--मिहनत

मज़ालिम--अत्याचार

"नूर"--निलेश 'नूर'

---

'समर कबीर'

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1461

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 3:24pm

जनाब मनोज कुमार अहसास साहिब आदाब, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by मनोज अहसास on May 9, 2018 at 3:08pm

   

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है आदरणीय कबीर साहब

आदरणीय नूर साहब को भी बधाई कि कबीर साहब की ये ग़ज़ल जब जब पढ़ी जाएगी संदर्भ के लिए आपकी ग़ज़ल भी पढ़ी जाएगी

जनाब मोहम्मद आरिफ साहब वैसे तो मुझे नही लगता कि आपने जो सवाल पूछे हैं उनका जवाब आपको नही पता होगा आप कन्फर्म करने के लिए पूछ रहे होंगे 

बड़े ग़ज़लकार फिल्मी धुनों पर गाकर लिखना अच्छा नही समझते उनका मानना ये होता है कि यदि गाकर लिखा जाए तो शब्द आसानी से लय पर चढ़ जाते हैं और ग़ज़ल में गहनता नही आ पाती 

पर यें गीत मेरे ख्याल से इसी बहर में हैं

 न झटको जुल्फ से पानी ,बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है, किसी पत्थर की मूरत से मोहब्बत का इरादा है आदि आदि 

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 2:16pm

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,मेरे और जनाब निलेश जी के बीच कोई आईपीएल नहीं चल रहा है,निलेश जी रोज़ एक ग़ज़ल कहते हैं और मैं कभी कभी,हाँ जब मैं उनकी उम्र का था तब मैं भी ख़ूब ग़ज़लें कहता था,और आईपीएल एक खेल है,और ग़ज़लें कहना खेल नहीं ।

1-इस ग़ज़ल की बह्र का नाम है,'हज़ज मुसम्मन सालिम-और इसके अरकान हैं,मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन ।

2-ग़ज़ल कहने का कोई आसान तरीक़ा नहीं,'ग़ज़ल कहने जो बैठोगे तो.. ।

3-ग़ज़ल के अरकान होते हैं,जो ऊपर लिख दिये हैं,लय से क्या मतलब?

4-इस ग़ज़ल की फ़िल्मी धुन का मुझे पता नहीं ।

सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Mohammed Arif on May 9, 2018 at 11:28am

आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,

                                                   लगता है आपके और आदरणीय नीलेश जी के बीच इस मंच पर ग़ज़लों का lPL चल रहा है । अच्छा है , ख़ुदा करें यूँ ही चलता रहे और हम जैसे छोटे क़लमकर्मियों को कुछ न कुछ तो सीखने को मिलें ।

                                                                         इस ग़ज़ल के संदर्भ में मेरे कुछ सवाल हैं :-

 (1) इस ग़ज़ल की बह्र और अर्कान क्या है ?

(2) अगर इस बह्र पर मैं कोई अन्य ग़ज़ल लिखना चाहूँ तो आसान तरीक़ा क्या है ?

(3) इस ग़ज़ल की लय क्या है ?

(4) क्या इस ग़ज़ल की कोई फिल्मी धुन है ? अगर हाँ, तो बताइए ।

                               शानदार, बेजोड़ और बेमिसाल ग़ज़ल के लिए शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 10:17am

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 10:15am

जनाब राम अवध जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 9, 2018 at 6:14am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । इस बेहतरीन गजल के लिए कोटि कोटि हार्दिक बधाई ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 9, 2018 at 5:53am

आदरणीय समर साहब बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है।

आदरणीय नीलेश जी के साथ

'ग़ज़ल जब भी पढ़ेंगे छेड़खानी याद आयेगी

सादर

Comment by Samar kabeer on May 8, 2018 at 3:23pm

मोहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब,नानी को याद करते करते ग़ज़ल कहने का प्रयास करें ।

ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Neelam Upadhyaya on May 8, 2018 at 2:50pm

आदरणीय समर कबीर साहब, बहुत ही उम्दा गजल । मुबारकबाद काबुल करें ।

"ग़ज़ल कहने जो बैठोगे तो नानी याद आएगी" – बहुत ही सही कहा । मुझे खुद गजल की ज्यादा समझ नहीं है लेकिन पढ़ना अच्छा लगता है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service