2122 1122 1122 22
तम की रातों में कहीं दूर उजाला देखो
डूबती नाव को तिनके का सहारा देखो।१।
दिन जो तपता हो तो रोओ न उसे तुम ऐसे
धूप कोमल सी हो जिसमें वो सवेरा देखो।२।
कहने वालों ने कहा है कि ये दुनिया घर है
हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो।३।
आप हाकिम हो रहो दूर तरफदारी से
न्याय के हक में न अपना न पराया देखो।४।
सिर्फ कुर्सी की सियासत में रहो मत डूबे
कैसे करता है ये निर्धन भी गुजारा देखो।५।
बनके नेता न सियासत को समझलो सबकुछ
देश जलने का तो अब न तमाशा देखो।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई विजय जी, स्नेहिल प्रशंसा के लिए धन्यवाद ।
आप गज़ल बहुत अच्छी लिख रहे हैं। बधाई लक्ष्मण जी।
आ. भाई बसंत जी, स्नेह के लिए आभार ।
बहुत सुंदर गजल
आ. भाई सत्यनारायन जी, उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय सादर बधाई
आ. भाई बृजेश जी, स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई गुमनाम जी, गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आदरणीय सादर
वाह बहुत खूब भाई जी वाह ......बधाई
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