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कैसे अजब हैं लोग जो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१ /२१२१ /२२२  /१२१२

खासों से बढ़ के  खास यूँ होते हैं आम भी
जिसने समझ लिया उसे मिलते हैं राम भी।१।


कैसे अजब हैं लोग जो कहते हैं यार ये
बदनामियों के साथ ही होता है नाम भी।२।


आती है जिसको भोर यूँ झट से अगर कहीं
ढलती है  उसकी  दोस्तो  ऐसे ही शाम भी।३।


अभिषेक हो रहा है अब सुनते शराब से
करने लगी हवस पतित देवों का धाम भी।४।


जब से गमों  ने  चुप्पियाँ  साधी हैं दोस्तो
गिरने लगे हैं रोज ही खुशियों के दाम भी।५।


यूँ  तो   बहाया  खून  ढब  गौरों  के  वास्ते
आजाओ अब तो दोस्तो अपनों के काम भी।६।


अपनी कटेगी  किस  तरह यारो बताइये
शामें उदास ही  नहीं  खाली  है जाम भी।७।


मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2018 at 6:22am

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2018 at 6:21am

आ. भाई गुमनाम जी, सादर अभिवादन । गजल की प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 4, 2018 at 8:32pm

जनाब भाई लक्ष्मण धा मी साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं I 

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 4, 2018 at 7:54pm

वाह बहुत खूब वाह ,,,,भाई जी बधाई ,,,

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2018 at 5:54pm

आ. भाई सुशील जी, गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2018 at 5:48pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर स्नेहाशीष पा संतुष्टि हुयी । कमियों से अवगत कराते रहिए । हार्दिक आभार स्वीकारें ।

Comment by Sushil Sarna on July 4, 2018 at 4:57pm

अभिषेक हो रहा है अब सुनते शराब से
करने लगी हवस पतित देवों का धाम भी।४।वाह आदरणीय धामी जी वाह क्या वास्तु स्थिति को आपने दर्शाने का प्रयास किया। बेहतरीन अहसासों की ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by Samar kabeer on July 4, 2018 at 2:11pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2018 at 12:25pm

कृपया छटे शेर में गौरों को गैरों पढ़े ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2018 at 11:51am

आ. भाई आरिफ जी, इस स्नेह के लिए आभार ।

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