(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)
हम अगर राहे वफ़ा में कामरां हो जाएँगे l
सारी दुनिया के लिए इक दास्तां हो जाएँगे l
आप ने हम को ठिकाना गर न कूचे में दिया
हम भरी दुनिया में बे घर जानेजाँ हो जाएँगे l
बे रुखी जारी रही फूलों से गर यूँ ही तेरी
खार भी तेरे मुखालिफ बागबां हो जाएँगे l
जैसे हम बचपन में मिलते थे किसे था यह पता
मिल नहीं पाएंगे वैसे जब जवां हो जाएँगे l
ज़िंदगी में इस तरह आएंगे महमाँ बन के वो
पहले दिल फ़िर दिल रुबा फ़िर दिल सितां हो जाएँगे l
इतनी जल्दी यह करिश्मा हो गा किस को आस थी
ज़ुल्म ढ़ाने वाले मुझ पर महरबां हो जाएँगे l
हम से नफरत करते करते किस को यह मालूम था
वो हमारे दिल में महमाँ नागहां हो जाएँगे l
शमअ तो शब भर जलेगी देखिए इनकी वफ़ा
जल के परवाने मगर पल में धुआँ हो जाएँगे l
कौन बोलेगा भला तस्दीक ज़ुल्मों के ख़िलाफ़
आप गर महफिल में गूंगे बे जुबां हो जाएँगे l
काम रां_ कामयाब, दिल सितां _माशूक़
ना गहां _अचानक
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब , ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया l
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,
बहुत ही उम्दा, बेजोड़ और दिलकश ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।बेहतरीन गज़ल।
शमअ तो शब भर जलेगी देखिए इनकी वफ़ा
जल के परवाने मगर पल में धुआँ हो जाएँगे l
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब, तरही मिसरे पर पहली ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,इतनी मुख़्तसर टिप्पणी देना ओबीओ मंच की परिपाटी नहीं,कृपया इस ओर ध्यान दें ।
जनाब बसंत कुमार साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया l
वाह बेहतरीन गजल
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