ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)
(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन)
क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई |
जो खफा मुझसे तेरी नज़र हो गई |
आँख में तेरी अश्के नदामत न थे
इस लिए हर दुआ बे असर हो गई |
ग़म तबाही का तुमको नहीं है अगर
आँख क्यूँ देख कर मुझको तर हो गई |
ख़त्म शिकवे गिले सारे हो जाएंगे
गुफ्तगू उनसे तन्हा अगर हो गई |
यह करामत हमारे अज़ीज़ों की है
यूँ न उनकी अलग रह गुज़र हो गई |
तुहमते बे वफाई थी दोनों तरफ़
बदगुमानी इसी बात पर हो गई |
मुझको हैरत है उनसे मिला नीम शब
फ़िर भी तस्दीक सबको ख़बर हो गई |
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जनाब गुमनाम साहिब, ग़ज़ल पर आपकीखूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
वाह खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई. .. .. सबको खबर हो गई . .. .वाह
मुह तरमा नीलम साहिबा, ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहब, बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए मुबारकबाड्ड कुबूल करें।
" ग़म तबाही का तुमको नहीं है अगर
आँख क्यूँ देख कर मुझको तर हो गई |"
मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब, ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।बेहतरीन गज़ल।
ख़त्म शिकवे गिले सारे हो जाएंगे
गुफ्तगू उनसे तन्हा अगर हो गई |
जनाब किशोर कांत साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कतऔर हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
वाह, बहुत ही ऊम्दा ग़ज़ल !
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