प्यार का सारांश कोई छान कर लाये वहाँ से
पारदर्शी प्यार के सन्दर्भ दिखते हों जहां से
कृष्ण केवल राधिका का है दिवाना मान लूं तो
मोर का फिर पंख तेरी सेज पर आया कहाँ से
( 2122 2122 2122 2122 )
जो सहारों के सहारे हैं, सरसते वे नही
फाड़ देते जो धरा को हैं तरसते वे नही
चापलूसों की हकीकत है मुझे बेशक पता
जानता हूँ जो गरजते हैं, बरसते वे नही
(2122 2122 2122 212)
वक्त था जब मैं तुम्हारे प्यार को परिमापती थी
नित्य नव उल्लास में सारी दिशाएं नापती थी
तुम गए हो भूल पर, भूली नही हूँ मैं दिवानी
वह अधर स्पर्श जिस पर बांसुरी सा कांपती थी
(२१२२ २१२२ २१२२ २१२२)
जीवन में कब किस हाल में रहना पड़े
अपनी पीड़ा तरु-विहग से कहना पड़े
किसे पता है भाग्य क्या दिन दिखाएगा
हमें बनवास श्री राम सा सहना पड़े
(8,7,7 )
(मौलिक/अप्रकाशित )
Comment
आभार सुशील सरना जी .
वाह वाह और वाह आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी ... गहन भावों की इन अप्रतिम मुक्तकों की प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें सर और उपन्यास के लिए हार्दिक शुभकामनाएं सर।
आपका उपन्यास जल्द पूरा हो ऐसी कामना करता हूँ ।
आ० समर कबीर जी ' ओ बी ओ मेरा पहला क्रश है . मैं भले इस समय सक्रिय नही हूँ पर एक उपन्यास रचना में व्यस्त होने के कारंण . ओ बी ओ लखनऊचैप्टर का मैं सबसे सक्रिय और अनुशासित सदस्य हूँ . ओ बी ओ के लगभग सभी पदाधिकारियों का स्नेह भी मुझे प्राप्त है . उपन्यास अंतिम चरण में है शीघ्र ही सक्रियता फिर बनेगी . आपने मुक्तक पर उत्साहवर्धक टीप दी इस हेतु शुक्रिया . सादर .
आ० नरेन्द्र चौहान जी
आपका सादर आभार
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जो आदाब,चारों ही मुक्तक उम्दा हुए हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
अव्वल तो आप ओबीओ पर आते ही नहीं,और कभी भूले भटके अपनी रचना लेकर आते हैं तो उन पर आई टिप्पणियों के जवाब भी नहीं देते,आपको तो मंच पर सक्रिय रहना चाहिए मुहतरम ।
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