जीवन के दोहे :
बड़ा निराला मेल है, श्वास देह का संग।
जैसे चन्दन से लिपट, जीवित रहे भुजंग।1।
अजब जहाँ की रीत है, अज़ब यहाँ की प्रीत।
कब नैनों की रार से, उपजे जीवन गीत ।2।
बड़ा अनोखा ईश का, है आदम उत्पाद।
खुद को कहता है खुदा, वो आने के बाद।3।
झूठे रांझे अब यहां, झूठी उनकी हीर।
झूठा नैनन नीर है, झूठी उनकी पीर।4।
जैसे ही माँ ने रखा, बेटे के सर हाथ।
बह निकली फिर पीर की, गंगा जमुना साथ।5।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बेहतरीन रचना , जीवन को इंगित करते।बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
पहला ही दोहा दर्शन के हृदय क्षेत्र को छू रहा......
तीसरा दोहा.....बहुत मारक और वाज़िब है.....
पाँचवा दोहा तो मेरी व्यक्तिगत अनुभूति का प्रस्तुतिकरण है.....आपको इस उत्तम दोहावली के लिए बहुत सारी बधाई
आदरणीय सुशील सरना जी बहुत ही सुंदर दोहे बधाई हो
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब .... सृजन के भावों को आत्मीय स्नेह से अलंकृत करने का दिल से आभार। मात्रा दोष को इंगित करने के लिए आपका हार्दिक आभार। मैं इसे अभी संशोधित करता हूँ। आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को आत्मीय स्नेह देने का दिल से आभार।
आदरणीय अशोक रक्ताले जी , सादर प्रणाम ... सृजन पर आपकी समीक्षात्मक आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया। तृतीय दोहे के मात्रिक दोष में मैं अभी संशोधन करता हूँ। त्रुटि की और ध्यान आकर्षित करने का दिल से आभार। आपका सुझाव अमूल्य है। हार्दिक आभार।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय बसंत कुमार जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा दोहे रचे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
जनाब अशोक रक्ताले जी की बात का संज्ञान लें ।
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