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जनाब लक्ष्मण धामी जी
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी आदाब,
देख रहा हूँ कि आजकल ओबीओ पर सोशल मीडिया की तरह टिप्पणीयाँ दी जा रही हैं,न उनमें रचनाकार को संबोधित किया जाता है,न जिस विधा में रचना होती है उसका हवाला होता है, ये ओबीओ की परिपाटी नहीं है,आप दोनों ओबीओ के पुराने सदस्य हैं,आपसे निवेदन करता हूँ कि कृपा कर ओबीओ मंच की गरिमा का मान रखें,और हर सदस्य का ये कर्तव्य है कि जहाँ भी ऐसी टिप्पणी नज़र आये वहाँ टोकें ज़रूर, निवेदन है कि मेरी बात की गम्भीरता को समझें और इसे अन्यथा न लें ।
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'उसी ने घाव दी जो छाँव मेंं ठहर के गया'
इस मिसरे में 'घाव' पुल्लिंग शब्द है, इसलिये 'घाव' की जगह "पीर" या "चोट" करना उचित होगा ।
'भला क्यूँ जाग रहा हूँ तमाम रातों से'
इस मिसरे में 'तमाम रातों' तमाम का अर्थ है 'पूरी'इसके साथ 'रात' एक वचन तो चलेगा बहुवचन नहीं 'पूरी रात' में जागता रहा,'पूरी रातो में जगता रहा' व्याकरण दोष है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-
'तमाम रात भला जागता हूँ क्यों मुझसे'
' मिला है जो भी तबीयत से वो निखर के गया'
इस मिसरे में 'तबीयत' को "तबीअत" कर लें ।
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को |
सुंदर रचना हुयी है हार्दिक बधाई ।
जीवन की सच्चाई, सच्चे अनुभव बयां करती बढ़िया रचना हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा 'वात्स्यायन' साहिब।
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