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जिसे भी दिल मे बसाया वो चीर कर के गया--

1212 1122 1212 112

मैं किसका नाम गिनाऊँ जो पीर भर केे गया
जिसे भी दिल मे बसाया वो चीर कर के गया
किसी दीवार पे टाँगा हुआ आईना हूँ
निगाह जिसने मिलाई वही सँवर के गया
मेरी कथा भी किसी फल भरे शजर सी है
उसी ने चोट दी जो छाँव मेंं ठहर के गया
भला क्यूँ जाग रहा हूँ मैं रोज़ रातों से
न पूछियेगा कभी कौन नींद हर के गया
ग़ुरूर क्यूँ न करे खुद पे जबकि पंकज से
मिला है जो भी तबीअत से वो निखर के गया
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on August 27, 2018 at 3:00pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी

जनाब श्याम नारायण वर्मा जी आदाब,

देख रहा हूँ कि आजकल ओबीओ पर सोशल मीडिया की तरह टिप्पणीयाँ दी जा रही हैं,न उनमें रचनाकार को संबोधित किया जाता है,न जिस विधा में रचना होती है उसका हवाला होता है, ये ओबीओ की परिपाटी नहीं है,आप दोनों ओबीओ  के पुराने सदस्य हैं,आपसे निवेदन करता हूँ कि कृपा कर ओबीओ मंच की गरिमा का मान रखें,और हर सदस्य का ये कर्तव्य है कि जहाँ भी ऐसी टिप्पणी नज़र आये वहाँ टोकें ज़रूर, निवेदन है कि मेरी बात की गम्भीरता को समझें और इसे अन्यथा न लें ।

Comment by Samar kabeer on August 27, 2018 at 2:49pm

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'उसी ने घाव दी जो छाँव मेंं ठहर के गया'

इस मिसरे में 'घाव' पुल्लिंग शब्द है, इसलिये 'घाव' की जगह "पीर" या "चोट" करना उचित होगा ।

'भला क्यूँ जाग रहा हूँ तमाम रातों से'

इस मिसरे में 'तमाम रातों' तमाम का अर्थ है 'पूरी'इसके साथ 'रात' एक वचन तो चलेगा बहुवचन नहीं 'पूरी रात' में जागता रहा,'पूरी रातो में जगता रहा' व्याकरण दोष है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-

'तमाम रात भला जागता हूँ क्यों मुझसे'

' मिला है जो भी तबीयत से वो निखर के गया'

इस मिसरे में 'तबीयत' को "तबीअत" कर लें ।

Comment by Shyam Narain Verma on August 27, 2018 at 11:49am
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2018 at 9:48am

सुंदर रचना हुयी है हार्दिक बधाई ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 26, 2018 at 1:08pm

जीवन की सच्चाई, सच्चे अनुभव बयां करती बढ़िया रचना हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा 'वात्स्यायन' साहिब।

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