शिक्षक दिवस के दोहे
बनते शिष्य महान तब, शिक्षक अगर महान
शिक्षक बिन हर इक रहा, अधकचरा इन्सान।१।
जिसने जीवन भर किया, शिक्षक का सम्मान
जग ने उसका है किया, इत उत बड़ा बखान।२।
शिक्षक थोड़ा सा अगर, दे दे जो उत्साह
भटका बालक चल पड़े, सदा सत्य की राह।३।
पथ की बाधा नित हरी, जिसने राह बुहार
दे थोड़ा सा मान कर, शिक्षक का आभार।४।
करके विद्या दान दी, जीने की हर सीख
उसके ही आभार को, आती यह तारीख।५।
शिक्षक बनकर जो जिये, जग में वही महान
नौकर बनके जो रहे, उनका क्या सम्मान।६।
सद्गुण सद्व्यवहार की, पायी सीख अपार
अपनाकर व्यवहार में, दें उनको उपहार।७।
करते विद्या दान जो, धन का तज कर मोह
उनके पीछे चल करो, पार तमस की खोह।८।
सदा नसीहत ज्ञान से, जो दिखलाते राह
मरकर भी पाते सदा, जग में मान अथाह।९।
दीपक सा जल जो सदा, देता ज्ञान प्रकाश
धरती से आकाश तक, उनका यश अविनाश।१०।
मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
अच्छा बदलाव किया आपने,5वें दोहे में भी बदलाव की आवश्यकता है,देखियेगा ।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आ. भाई सुरेंद्र जी, दोहों की प्रशंसा के लिए धन्यवाद । सुझावानुरूप बदलाव किया है देखियेगा ।
आ. बबीता जी, दोहों का मान बढ़ाने के लिए आभार ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए आभार । कुछ बदलाव किये हैं देखियेगा ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"जी। शिक्षक दिवस पर बेहतरीन दोहे प्रस्तुत किये हैं।जीवन में शिक्षक की महत्ता को बड़ी खूबी से वर्णन किया है।
सदा नसीहत ज्ञान से, जो दिखलाते राह
मरकर भी पाते सदा, जग में मान अथाह।९।
आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी सादर अभिवादन। शिक्षक दिवस पर बेहतरीन दोहे सृजित किये आपने, बधाई स्वीकार कीजिये।
प्रकाश की तुकांतता आकाश उचित नहीं, ठीक इसी तरह सम्मान का मान भी उचित नहीं। गौर कीजयेगा।
शिक्षक की महानता का वर्णन दोहों द्वारा किया गया ,बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय लक्ष्मण सरजी।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,शिक्षक दिवस पर सार्थक दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे दोहे में 'सम्मान' और 'मान' की तुकान्तता सहीह है क्या?
तीसरे दोहे में //जो दे दे उत्साह// को "देदे जो उत्साह" करना उचित होगा ।
//पथ की बाँधा नित हरी//
इस पंक्ति में 'बाँधा' या "बाधा"?
//करके विद्या दान दी, जीने की हर सीख
उसके ही आभार को, आती यह तारीख//
इस दोहे में 'सीख' और "तारीख़"की तुकान्तता उचित नहीं,ग़ोर कीजियेगा ।
दसवें दोहे में 'प्रकाश' और 'आकाश' की तुकान्तता सहीह है क्या ?
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