"हमने कहा था न कि थक जाने पर तलब होने पर वह आयेगा ही! हमें रेस्क्यू की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए!"
"हां, ग़रीब हो या अमीर, पर है तो चाय का आदी ही! यह चाय फेंकेगा नहीं! 'मनी माइंडिड' होगा, तो यह पियेगा और पिलायेगा!" चाय के डंके में दो-तीन घंटों से पड़ी शेष चाय में गोते लगाते एक चीटे ने डंके की दीवारों पर चढ़ते, गिरते-डूबते हुए उस चीटे की बात सुनकर कहा। चाय में डूबे और डंके में भटकते संघर्षरत चींटे भी बड़ी उम्मीद के साथ सजग हो जीवन-रक्षा की कल्पना करने लगे।
"ज़रा फुर्ती करो! जब तक वह कोई 'माचिस' या 'लाइटर' तलाश रहा है 'रसोई' में, तब तक ज़ोर लगाकर जितने साथी यहां से बाहर जा सकें, खिसक लें! .. वरना 'आग' से 'तपकर' मरना ही होगा!" एक अन्य चीटे ने नीचे मुड़कर तैरते साथियों का हौसला बढ़ाते हुए कहा।
"हां, चाय है या बची हुई जम्हूरियत! अपना 'डंका' बजाने वाला पी जायेगा और पिलवा देगा हम चींटों को मारकर, मरवा कर या अपने 'डंके' से हमें बाहर भगाकर!" एक वरिष्ठ अनुभवी चीटे ने चाय के डंके के बिल्कुल ऊपर किनारे पर जाकर नीचे वालों से हंसकर कहा - "हमें अपने मुल्क की परेशान ग़रीब जनता या किसान समझ रखा है!"
"इसको मालूम है कि हमारी एकता क्या-क्या कर सकती है! इसने भी तो हम चींटों पर लिखी गई कहानियां और कवितायें पढ़ी या सुनी होंगी दिल्ली वालों की तरह!" चाय की 'लहरों' से ऊपर आने की कोशिश करते एक और चीटा बोल पड़ा - "नोचना और काटना हमें भी आता है!"
"कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होतीsss .. !" बाहर निकल चुके कुछ चीटों ने लोकप्रिय कविता की पंक्तियां गुनगुनाते हुए कहा। जब तक चाय के डंके की तलहटी पर आग की आंच पहुंचती, उस 'चाय' और 'डंके' में फंसे लगभग सभी चीटे पारस्परिक हौसला अफ़ज़ाई और सहयोग से बाहर सुरक्षित निकल चुके थे। हां, चाय में घुली 'योजनाओं रूपी शक्कर' की अति लालच में 'मतदाता या राज्य रूपी' कुछ एक डूबकर मर चुके थे!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर उपस्थित होकर, समय देकर अपनी राय सांझा करने और मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब जवाहरलाल सिंह साहिब, जनाब विजय निकोरे साहिब, मुहतरम आशीष यादव साहिब, जनाब समर कबीर साहिब और जनाब नवीन मणि त्रिपाठी साहिब।
आदरणीय शैख़ शहजाद उस्मानी साहब, आपने चीटियों के प्रतीक के माध्यम से आज की ब्यवस्था पर जबर्दश्त चोट की है. बहुत बहुत बधाई!
आपकी लघुकथाएँ सदैव सुन्दर संदेश देती हैं, प्रेरणा देती हैं, यह आपकी कलम का कमाल है, आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी।
//जबरदस्त रूपक//
जनाब आशीष यादव जी आदाब,इतनी छोटी टिप्पणी,सोशल मीडिया पर चलती होगी,इस मंच पर नहीं,यहाँ पहले रचनाकार को आदर से संबोधित करते हैं फिर उसकी रचना पर तारीफ़ या आलोचना की जाती है,कृपया संज्ञान में लें ।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
जबरदस्त रूपक।
वाह वाह आदरणीय बहुत ही प्रेरक लघुकथा । पढ़कर आनंद आ गया । तहेदिल से बधाई आपको ।
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