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अंधा कानून  -  लघुकथा  –

अंधा कानून  -  लघुकथा  –

"सर, पिछले महिने  मैंने आपकी कंपनी में इंटरव्यू दिया था। आपने खुद मुझे बधाई देकर बताया था कि इस पद के लिये मेरा चयन हो गया है। हफ़्ते दस दिन में नियुक्ति पत्र डाक द्वारा मिल जायेगा"।

"हाँ, यह सच है मिस ज्योति लेकिन...."।

"लेकिन क्या सर"?

"मुझे खेद है कि यह पद किसी और को दे दिया गया"।

"सर, क्या किसी मंत्री का फोन आगया था"?

"नहीं मिस ज्योति, हमारे यहाँ सिफ़ारिश नहीं चलती"।

"फिर  सर, रातों रात इस परिवर्तन का कोई तो वाजिब कारण होगा"?

"हाँ बिलकुल है। वह लड़की एक पिछड़ी जाति से थी"।

"मगर इस पद के विज्ञापन में तो ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि यह पद आरक्षित है"।

"आप सही कह रही हैं"।

"तो फिर  सर मेरे साथ यह भद्दा मज़ाक़ क्यों किया गया"?

"मिस ज्योति, मेरे साथ तो आपसे भी ज्यादा शर्मनाक मजाक़ हुआ है| मैं तो किसी से कुछ बताने की स्थिति में भी नहीं हूँ"।

"पर सर मुझे तो इस मामले की सच्चाई जानने का पूरा हक़ है"।

"ठीक है मिस ज्योति, मैं आपको सच्चाई से रूबरू करा सकता हूँ। लेकिन आप वादा कीजिये यह बात हम दोनों को बीच ही रहनी चाहिये"।

"जी सर मैं आपसे वादा करती हूँ"।

"वह लड़की मुझे धमकी दे गयी थी कि यदि उसे नौकरी नहीं दी तो वह एस सी एस टी एक्ट में फ़ंसा देगी"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on September 17, 2018 at 4:43pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीलम जी। आपकी बात से मैं सहमत हूँ।

Comment by Neelam Upadhyaya on September 17, 2018 at 3:16pm

 आदरणीय तेजवीर सिंह जी, नमस्कार।  सारे  विमर्श के बीच, सामाजिक समस्या से सरोकार रखती हुई बढ़िया लघु कथा की रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।  वैसे इतना तो तय  है कि  जितने भी तरह के एक्ट लाये गए हैं, उनका बखूबी दुरुपयोग होता आया है और आगे भी इसमें कुछ सुधार होने की आशा नहीं है। 

Comment by TEJ VEER SINGH on September 15, 2018 at 8:40pm

हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर साहब जी।लघुकथा पर आपकी टिप्पणी स्वागत योग्य है।आपकी बात सच है कि महिलाओं के खिलाफ़ अत्याचार वाले क़ानून का भी खूब दुरुपयोग होता है और आगे भी होगा।कोई भी क़ानून जब तक फ़ुल प्रूफ़ नहीं बनेगा, उसका दुरुपयोग होता रहेगा।आजकल अधिकतर क़ानून राजनीति से प्रेरित होते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य राजनैतिक रोटियाँ सेकना होता है।सादर।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 15, 2018 at 8:32pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।लघुकथा पर आपकी सशक्त और सटीक टिप्पणी ने मेरी सोच को सहारा दिया।आज के दौर में एक भय ग्रस्त समाज की रचना को बढ़ावा दिया जा रहा है।सच बोलने पर बंदिशें लगायी जा रही हैं।सादर।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 15, 2018 at 8:25pm

आदरणीय नरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप जी, नमस्कार। आपका कहना सही है कि बहुत से क़ानूनों में खामियाँ हैं, इसके साथ ही यह भी कटु सत्य है कि लोग उन्हीं का दुरुपयोग भी करते हैं।इसलिये एक जागरूक नागरिक और संवेदनशील लेखक होने के नाते मेरा अनुरोध है कि उन कानूनों के बारे में आप भी लिखिये।जिस एक्ट की मैंने चर्चा की है, उसके दुरुपयोग के मामले मैंने खुद देखे हैं।कितनी अजीब बात है कि एक व्यक्ति के खिलाफ़ एफ़ आई आर दर्ज़ होते ही उसे बिना जाँच पड़ताल के, बिना उसकी बात सुने उसे गिरफ़्तार कर लिया जायेगा।भले ही वह झूठी एफ़ आई आर हो।यह कितनी बड़ी विसंगति है।आज के दौर में जब मनुष्य आधुनिकता की दौड़ में बड़े बड़े आविष्कार कर रहा है तो क्या एक छोटी सी जाँच के लिये कुछ घंटे इंतज़ार नहीं हो सकता।ऐसे काले क़ानून तो केवल अशिक्षित और जंगली मनुष्यों के मध्य ही संभव हैं।सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 15, 2018 at 2:38am

मुझे वर्तमान स्थिति का पता नहीं है , महिलाओं पर अत्याचार ( पारवारिक कलह ) के विरूद्ध एक विशेष न्यायालय की व्यवस्था की गई थी। अब उसके विषय में सुनने में नहीं आता था , पर यह अवश्य सुनने में आता था कि इस क़ानून का दुरपयोग होता है। शायद कुछ लोग अपने ही अनुभवों से कुछ नहीं सीखते हैं। मानविकी के विद्यार्थी यह पढ़ते हैं कि क़ानून कठोर हो इससे अधिक आवश्यक यह है कि वह लचीला हो और शतप्रतिशत निष्पक्ष हो। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि क़ानून व्यवस्था प्रभावी और प्रभावशाली हो क़ानून चाहे कितना भी सरल और उदार हो। न्याय व्यवस्था प्रभावकारी न हो और केवल क़ानून कठोर और कठोर हो तो भी वह अपराध रोकने में सक्षम नहीं हो पाता है। तीसरी बात , यदि कठोर दमनकारी क़ानून से व्यवस्था बनायी जा सकती होती तो दुनिया में चंगेज़ खान के वंशज अभी भी हुकूमत कर रहे होते अथवा दुनिया में अभी भी सब जगह राजतंत्र ही होता। पर अब पढ़ाई - लिखाई की बात तो होती ही नहीं , हर व्यक्ति योग्यता का स्वतः प्रमाण - पत्र है। सारा ज्ञान तो गूगल दे रहा है और उसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी कहा जा रहा है। वैसे कुछ लोग अभी भी पढ़ - लिख रहे हैं।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी , इस सामयिक कथा के लिये बधाई , सादर।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 14, 2018 at 8:28pm

बेहतरीन समसामयिक सामाजिक सरोकार और जन-जागरूकता हेतु आवश्यक सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी, यहां लघुकथा संदर्भ में  एक ताज़ा अहम विसंगति को उभार कर चिंतन-मनन, पुनर्विचार, पुनः शोध और.विश्लेषण का आवश्यक मुद्दा उठाया गया है। यहां पूर्वाग्रह नहीं, कड़वा सच है। दहेज़ ऐक्ट से पीड़ित निर्दोष पुरुषों और उनके परिजनों के दर्द को मैंने देखा व सुना है। इसी से सबक़ लेते हुए मैं भी धारा 377 में सुधार का पक्ष लेता हूं और इसे समाप्त करने का विरोध। इसी प्रकार  विकसित शिक्षित मुस्लिमों वाले विदेशों के अंधानुकरण कर या उनके राजनीतिक, व्यावसायिक दबाव में 'तीन तलाक़ संबंधित किसी भी बिल/क़ानून का मैं विरोध करता हूँ, क्योंकि अपने मुल्क में ऐसे क़ानूनों का भयंकर दुरुपयोग व पीड़ितों का भयंकर मानसिक/शारीरिक/आर्थिक और सामाजिक शोषण व हत्याओं में बढ़ोत्तरी होगी भविष्य में जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती! क्योंकि अपने मुल्क में  अशिक्षा, अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, ग़रीबी, बेरोज़गारी, अंधविश्वास, कट्टरपन , महिला शोषण के बाद तानाशाही इतनी अधिक है कि सकारात्मक फल नगण्य ही रह सकते हैं। 

पहले आवश्यक है समान अनिवार्य शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, स्थायी स्वरोज़गार और आत्मनिर्भरता और सच्ची देशभक्ति वाले नागरिक कर्तव्य-जागरूकता और अभ्यास। सादर।

Comment by नाथ सोनांचली on September 14, 2018 at 7:34pm

आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। मैंने पूर्वाग्रह शब्द इसलिए प्रयोग किया क्योकि ऐसे तमाम कानून हैं जिसके दुरुपयोग की संभावनाएं हैं जबकि आपके लघुकथा में सीधे सीधे "एसटी एससी एक्ट" नाम आया। आप बिना इस नाम को लिए प्रतीकात्मक रूप से भी यह लिख सकते हैं क्योकि जितना मैं जानता हूँ, आप एक बेहद उम्दा लघुकथाकार है। सादर

Comment by TEJ VEER SINGH on September 14, 2018 at 7:10pm

हार्दिक आभार आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह "कुशक्षत्रप" जी। किसी हद तक आपकी बात उचित है। लेकिन मेरी लघुकथा का आशय केवल यह जताना है कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा इस प्रकार की कुचेष्टा की गयी तो क्या बचाव का कोई रास्ता है।मेरा उद्देश्य इस एक्ट की खामी को उजागर करना है। इसमें पूर्वाग्रह जैसा कोई मसला नहीं है।सादर।

Comment by नाथ सोनांचली on September 14, 2018 at 6:52pm

आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। एक पूर्वाग्रह को आधार बनाकर आपने यह लघुकथा लिखी है जो अफसोस जनक है। कानून का इस तरह धमकी देकर अगर जॉब मिलती तो आज हर जगह उसी तबके के लोग होते। बहरहाल इस लघुकथा के लिए बधाई

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