जनहित में
अप शब्दों से बचना सीखें
सबके दिल में बसना सीखें
गम की सारी खायी पाटें
हिल मिलकर के हँसना सीखें ll
सुख दुख को सब सहना जानें
छोड़ बैर सब कहना मानें
सहिष्णुता का पाठ पढ़ाकर
भाई जैसा रहना जानें ll
दिल से सबको गले लगाएं
प्रेम मुहब्बत सदा बढ़ाएं
हर गिरते का हाथ पकड़कर
बीच राह में उसे उठाएं ll
ये अपनों से दूरी कैसी
आखिर ये मजबूरी कैसी
अब उसका हक नहीं यहाँ पर
भेदभाव बे नूरी कैसी ll
समता मूलक देश बनाएं
घृणित भाव को सभी मिटाएं
एक आँख से सबको देंखें
जनहित में हर कदम उठाएं ll
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत ही जबरदस्त डॉ साहेब चौपाई छंद में बढियाँ प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर
आदरणीय डॉ साहब बड़ी सुन्दर रचना है..
आदरणीय छोटे लाल जी बहुत सुंदर संदेशप्रद रचना .... हार्दिक बधाई।
बहुत ही खूबसूरत रचना के लिए बधाई, मित्र छोटेलाल सिंह जी
आदरणीय छोटेलाल जी आदाब,
बेहतरीन संदेशप्रद रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
16 ही मात्रा है, मुझसे भूल हुई,'अप' की जगह "आप" पढ़ गया ! क्षमा ।
परमादरणीय समर साहब जी सादर अभिवादन आपके उत्साह वर्धन से लेखन को बल मिला ,आपकी पैनी नजर से कविता निखर गयी ,आपने17 के मात्रा बताया मैं तो 16 समझकर रखा इसकी खामियां आप ही बता सकते हैं, हम अभी सीखने के दौर में हैं, आपका बहुत बहुत आभार सादर
जनाब डॉ.छोटेलाल सिंह जी आदाब,अच्छा सन्देश दे रही है आपकी रचना,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'अप शब्दों से बचना सीखें'17 मात्रा ।
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