बात लिखूँ मैं नई पुरानी, थोड़ी कड़वी यार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।
झेल रहा है बचपन देखो,
बस्तों का अभिशाप
सदा प्रथम की हसरत पाले,
दिखते हैं माँ बाप।।
पढ़ो रात दिन नम्बर पाओ, कहना छोड़ो यार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।
गुंडे और मवाली के सिर,
सजे आजकल ताज
पढ़े लिखे हैं झोला ढोते,
पर है मौन समाज।।
सबको चिंता एक यहाँ बस, हो स्वजाति सरकार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।
धर्म कर्म की आड़ लगाए,
हुए कई बदनाम
चाहे राम रहीम रहा हो,
या हो आशाराम।।
कुछ बाबा तो योग तले ही, करते अब व्यापार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।
रोज सवेरे मंदिर जाएं,
और रखें उपवास
माथ भरे का तिलक लगाएँ,
यह इनका विश्वास।।
पढ़े लिखें ना कर्म करें ये, हो कैसे उद्धार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 रामबली जी सादर अभिवादन। रचना को अपनी प्रतिक्रिया से पुरस्कृत करने के लिए आभार
आद0 अजय तिवारी जी सादर अभिवादन। रचना पर आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए कोटिश आभार
सरसी छंद आधारित बढियाँ गीत लिखा है आपने आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी। हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर
आदरणीय सुरेन्द्र जी, एक और सोद्देश्य काव्य-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बहुत बहुत आभार आपका
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। आपके प्रतिक्रिया के लिए आभार
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। बहुत बहुत आभार आपका
आ. भाई सुरेंद्र जी, बहुत खूबसूरत गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।
वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर और सार्थक गीत...बधाई
आदरणीय सुरेन्द्र जी वर्तमान को जीती इस;सुंदर रचना के लिए दिल से बधाई।
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