ज़िंदगी ....
तुम आईं
तो संवरने लगी
ज़िंदगी
साथ जीने
और मरने के
अर्थ
बदलने लगी
ज़िंदगी
मौसम बदला
श्वासें बदलीं
अभिव्यक्ति की साँझ में
बिखरने लगी
ज़िंदगी
प्रतीक्षा
मौन हुई
शब्द शून्य हुए
चुपके-चुपके
स्मृति के परिधान में
सिमटने लगी
ज़िंदगी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नरेंदर सिंह चौहान जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब सृजन के भावों पर आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया एवं सुझाव का दिल से आभार। ।
आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी सृजन के भावों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार ।
खुब सुन्दर रचना सर
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
' तुम आई'--"तुम आईं"
' बदलनी लगी'--"बदलने लगी"
आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बेहतरीन सुंदर औऱ सार्थ रचना के लिए बधाई
आ. भाई सुशील जी, अच्छी रचना हुयी है । हार्दिक बधाई ।
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