(फाइ इलातु न _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फ़े लुन)
ख़त्म कर के ही मुहब्बत का सफ़र जाऊंगा l
तू ने ठुकराया तो कूचे में ही मर जाऊँगा l
जो भी कहना है वो कह दीजिए ख़ामोश हैं क्यूँ
आपका फ़ैसला सुनके ही मैं घर जाऊँगा l
वकते आख़िर है मेरा पर्दा हटा दे अब तो
छोड़ कर मैं तेरे चहरे पे नज़र जाऊँगा l
आ गए वक़ते सितम अश्क अगर आँखों में
मैं सितमगर की निगाहों से उतर जाऊँगा l
लौट कर आऊंगा मैं सिर्फ़ तू इतना कह दे
जिंदगी भर मैं उसी रह पे ठहर जाऊँगा l
मैं इबादत की तरह करता रहा इश्क़ मगर
सोचती ही रही दुनिया के मैं डर जाऊँगा l
उसने तस्दीक सहारा न दिया गर मुझको
छोड़ कर उसका मैं दर कौन से दर जाऊँगा l
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जनाब भाई लक्ष्मण धा मी साहिब , ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
जनाब राज़ नवादवी साहिब , ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब, आदाब. अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर
जनाब मिर्ज़ा जावेद साहिब, ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब , ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
मुहतरम जनाब तसदीक़ साहिब उम्दा अशआर के, लिए बहुत बहुत मुबारक बाद
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।बेहतरीन गज़ल।
मैं इबादत की तरह करता रहा इश्क़ मगर
सोचती ही रही दुनिया के मैं डर जाऊँगा l
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
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