माँ शारदा का वरदान है प्यार
[ श्री रामकृष्ण अस्पताल सेवाश्रम, कंखल (उत्तरखंड, भारत) से ]
ऐसी ही ... प्रिय
लेटी रहो न मेरे घुटने पर सर टेके
भावनायों के निर्जन समुद्र तट पर आज
बहें हैं आँसू बहुत मध्य-रात्रि के अंधेरे में
कभी अनेपक्षित बह्ते कभी रुक्ते-रुकते
पहले इससे कि तुम्हारा एक और आँसू
मेरे अस्तित्व पर टपक कर मुझको
नि:स्तब्ध, निश्चल
स्नेह-सरोवर-सदृश विभोर करे
आशीर्वाद लो, लो आशीर्वाद माँ-जननी से
कि समाई हो मेरे मन में तो मुझको यह वरदान मिले
तुम्हारे सब आँसू जो गिरे हैं आज घुटने पर मेरे
वह सब मिल कर जम कर सभी
मुझमें बस रही तुम्हारी शुद्ध आस्था का
हमारे परस्पर स्नेह की परिचित संज्ञा का
मात्र आवरण नहीं
एक और आत्मीय असाधारण
सुदृढ़ परिपूर्ण शिलास्थान बनें
जय है माँ-जननी, जय है तुम्हारी
जय माँ शारदा, जय है तुम्हारी
सर्व-व्यापी हो तुम, हो करुणामयी
दो न मुझको वरदान अभी
कि मुझमें बस रही मेरी “प्रिय” का रहे
उच्चतम सम्मान और स्थान सदा स्थाई
जय करुणामयी माँ, कोटि जय है तुम्हारी
माँ शारदा, न “हाँ” बोलती हो, न “ना”
फिर किसी सिहरन के साथ घुल जाती हो मुझमें
जैसे घुल जाती है “मेरी प्रिय”
मेरे घुटने पर सर टेके मुझमें ...
मानो “वहीं” हो “मेरी प्रिय” का सारा सलोना संसार
आँसू टपका कर “प्रिय” ने बरसाए हैं जो उदगार
लगा आज मुझको मानो सहसा
“मेरी प्रिय”, “मेरी प्यार” ... वह ही मेरी
स्नेह-जननी है
वह ही है मेरी माँ शारदा
और उसका प्यार भव-सागर के इस पार
सच, प्रिय, प्रतीक्षातुर हूँ मैं
ऐसे में तुम माँ शारदा बनी
याद बहुत आ रही हो आज ..
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्र्सिहं जी
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय तेज वीर सिंह जी
हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोरे जी।बेहतरीन प्रस्तुति।
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय भाई लक्ष्मण जी।
मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय समर भाई।
आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन रचना हुयी है । हार्दिक बधाई ।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,भारत में आपका स्वागत है ।
हमेशा की तरह एक उत्तम और गम्भीर रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें।
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