बाद ए सबा
पूछा जो किसी ने बावरी बाद ए सबा से
उफ़्ताँ व खेज़ाँ है तू ए बावली हवा
टकराई है तू बारहा बेरहम दीवारों से
खटखटाए हैं कितने बंद दरवाज़े भी तूने
आज बता तो ज़रा तेरी मंज़िल कहाँ है ?
बाहोश बाद ए सबा
सनसनाई, कुछ शरमाई ... कहा ...
क्या शमा ने पूछा कभी परवाने से
यह कैसा उसूल है, उसलूब है कैसा
तेरी पाक उलवी उल्फ़त का अभी तक
क्या उमीद लिए जलता है इस कदर
तू उम्र भर मुझ पर रात के वीराने में
कैसी रफ़ाकत है यह, तुझे रफ़ाहियत नहीं
जानती हूँ मैं कि उल्फ़त में है रमीदगी नहीं
जा, न जल यहाँ, फ़ना होना है दिल्लगी नहीं
तू उम्र-रसीदा बन, उर्फ़ी उब्वाद बन तू
जल-जल कर इस तरह तेरे और जलने में
रुक, बता तो ज़रा, तेरी रज़ा क्या है ?
सवाल पर सवाल पर जवाब कहाँ
जल चुका था अब तक वह परवाना
शब ए अलम है, संगदिल है आलम
बंद हैं रोशनदान, बंद दरवाज़े सारे
थक चुकी है हवा, शबिस्ताँ कहाँ है
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
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बाद ए सबा = पुरवा हवा
उफ़्ताँ व खेज़ाँ = गिरती-पड़ती
उर्फ़ी = मशहूर
बारहा = अक्सर
बाहोश = सचेत
रज़ा = इच्छा
उसूल = सिद्धांत
उसलूब = तरीका, ढंग
उलवी = स्वर्ग से संबंध रखने वाला
उम्र-रसीदा = लंबी उम्र वाला
रफ़ाकत = साथी होने का भाव
रफ़ाहियत = आराम, सुख
रमीदगी = बचने और हटे रहने की प्र्वृति
उब्वाद = उपासक, पुजारी
शब ए अलम = दुख की रात
शबिस्ताँ = रात को रहने का स्थान
संगदिल = कठोर-हृदय
आलम = संसार
Comment
प्रिय तेज वीर सिंह जी, समर कबीर जी, महेन्द्र कुमार जी:
घर में कुछ परिस्तितियों के कारण आज बहुत समय के बाद ओ बी ओ पर आया हूँ। आप सभी ने इस रचना को मान दिया, मैं हृदयतल से आपका आभारी हूँ। विलम्ब के लिए कृप्या क्षमा करें।
आपके लिए शुभकामनाएँ लिए,
आपका मित्र
विजय निकोर
आदरणीय विजय निकोर जी, बेहद उम्दा कविता कही है आपने. दिल से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत उम्दा कविता उर्दू,अरबी,फ़ारसी शब्दों को आपने बहुत सलीक़े से बरता है,और इसके कारण कविता में चार चाँद लग गए हैं,बहुत ख़ूब, वाह,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोरे जी।बहुत सुंदर रचना।
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