(मफा इलुन _फ़ इ ला तुन _मफा इलुन _फ़े लुन)
यूँ ही धुआँ न अचानक उठा है गुलशन में l
लगी है आग यक़ी नन किसी नशे मन में l
मुझे है ग़म यही उन पर शबाब आते ही
मिलें न वैसे वो मिलते थे जैसे बचपन में l
न मैं सुकून से हूँ और न चैन से हो तुम
ये कैसी खींच ली दीवार हम ने आँगन में l
सितम भी ढाए तो वो मुस्कुरा के ही ढाए
यही तो ख़ास है फितरत हमारे दुश्मन में l
रखें या तोड़ दें बोलें ही सच हमेशा ये
मिले ये दोस्तों खसलत हर एक दर्पन में l
छुपाए बैठे हैं महफ़िल में अपने जलवे वो
यही है खौफ न लग जाए आग चिलमन में l
किसी की याद न तस्दीक क्यूँ सताए मुझे
चमन में झूले भी पड़ने लगे हैं सावन में l
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जनाब महेंद्र कुमार साहिब, ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
न मैं सुकून से हूँ और न चैन से हो तुम
ये कैसी खींच ली दीवार हम ने आँगन में ...बहुत ख़ूब!
इस उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान जी. सादर.
जनाब भाई सुशील सरना साहिब, ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
जनाब राज़ नवाद्वी साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
यूँ ही धुआँ न अचानक उठा है गुलशन में l
लगी है आग यक़ी नन किसी नशे मन में l
मुझे है ग़म यही उन पर शबाब आते ही
मिलें न वैसे वो मिलते थे जैसे बचपन में l.... वाह आदरणीय तस्दीक अहमद साहिब बहुत ही शानदार अशआर लिखे हैं आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।
आदरणीय Tasdiq Ahmed Khan साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर.
जनाब गजेंद्र साहिब , ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
जनाब महेंद्र कुमार साहिब , ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I हिन्दी टाइप मुझे अच्छी तरह आती नहीं, बहुत कोशिश की मगर नुक्ते वाले अल्फाज़ ही नज़र नहीं आए l
आदरणीय तस्दीक़ अहमद साहिब सादर अभिवादन। बहुत ही दिलकश और पुुुरअसर अशआर हुए हैं। दिली दाद और बधाई स्वीकारें।
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