For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

झूठ फैलाते हैं अक़्सर जो तक़ारीर के साथ (१५)

(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
झूठ फैलाते हैं अक़्सर जो तक़ारीर के साथ
खेल करते हैं वतन की नई तामीर के साथ 
***
ख़्वाब देखोगे न तो खाक़ मुकम्मल होंगे 
ये तो पैवस्त* हुआ करते हैं ताबीर के साथ 
***
जो बना सकते नहीं चन्द निशानात कभी 
हैफ़* क्या हश्र करेंगे वही तस्वीर के साथ 
***
ग़म भी हमराह ख़ुशी के नहीं रहते,जैसे
कोई शमशीर कहाँ रहती है शमशीर के साथ
***
ऐसे इन्साफ़ के होते न मआनी कोई 
जो कि मुफ़लिस को मिले गर बड़ी ताख़ीर के साथ 
***
जुर्म का साथ निभाएगा न ईमान कभी 
सांस लेना नहीं मुमकिन कभी नक्सीर के साथ 
***
ख़ून बहता है अभी अम्न के हालात नहीं 
और क्या बाक़ी बचा होना है कश्मीर के साथ 
***
ये तक़ाज़ा है कि अख़लाक़ का दामन थामें 
तंज़ मत कीजिये कोई किसी दिलगीर के साथ 
***
आप हरगिज़ न करें गौर लक़ीरों पे 'तुरंत '
क़ुफ़्ल तक़दीर का खोलें ज़रा तदबीर के साथ
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on January 22, 2019 at 11:01pm

आप दोनों की महब्बत के लिए शुक्रगुज़ार हूँ

Comment by Md. Anis arman on January 22, 2019 at 6:36pm

आप का ही नहीं गहलोत जी हमारा भी यही हाल है अपनी गलती दिखाई नहीं देती ,और बात सिर्फ गलती पकड़ने कि नहीं है समर सर को ग़ज़ल को सजाना आता है     , वैसे आप बहुत अच्छा लिखते हैं 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 21, 2019 at 10:05pm

आदरणीय  Md. anis sheikh साहेब आदाब | आपकी हौसला आफ़जाई के लिए शुक्रगुज़ार हूँ | यक़ीनन समर कबीर साहेब ,उन खामियों पर नज़र रखते हैं जो मुझे दिखाई भी नहीं पड़ती | ख़ुदा ने उन्हें इस हुनर से नवाज़ा है | 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 21, 2019 at 10:02pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब आदाब | पहली बार ऐसा महसूस हो रहा है कि एक सही गॉडफादर मुझे मिल गया है | आपकी इस्लाह इतनी सटीक होती है कि दिल से दाद निकलती है इस्लाह पर | चूँकि ग़ज़ल के बाबत जो कुछ सीखा है सिर्फ ३ साल में सीखा है जो बहुत कम समय है ग़ज़ल को समझने के लिए | आपकी सरपरस्ती अवश्य कुछ नींव मज़बूत करेगी ,ऐसी उम्मीद होने लगी है | आपकी इस्लाह के अनुसार संशोधन कर रहा हूँ | सादर आभार | 

Comment by Md. Anis arman on January 21, 2019 at 12:35pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत तुरंत जी ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है, समर ने इतनी बारिकी से छाना है ग़ज़ल को उसका तो जवाब ही  नहीं ,हवा छानने का हुनर रखते है सर आप  ,हायड्रोजन ,ऑक्सीजन अलग कर दें ,मज़ा आ गया |

Comment by Samar kabeer on January 21, 2019 at 11:31am

ग़म मेरे पास हमेशा नहीं रह पाते हैं 
कोई शम्शीर कहाँ रहती है शम्शीर* के साथ'

इस शैर को आप चाहें तो इस तरह कर सकते हैं:-

'ग़म भी हमराह ख़ुशी के नहीं रहते,जैसे

कोई शमशीर कहाँ रहती है शमशीर के साथ' 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 20, 2019 at 3:00pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब आदाब | आपकी हौसला आफ़जाई का तहे दिल से शुक्रिया | ऐबे -तनाफ़ूर का मुआमला तो विवादास्पद ही रहता है | लेकिन जिस बारीकी का आपने ज़िक़्र किया वह तो अवश्य गौर करने लायक है | ये नुक्ता तो आप न बताते तो मेरे ध्यान में ही नहीं आता | ये तो शतुरगुरबा ही हो गया शायद | ताला शब्द तो उर्दू और हिंदी में एक ही होता है यही मान कर प्रयोग किया | लेकिन आपकी इस्लाह ज्यादा प्रभावी है | वही संशोधन कर रहा हूँ | शमशीर वाले शेर का कुछ हो सकता है तो बताएं वरना ख़ारिज़ करना ही ठीक होगा | 

Comment by Samar kabeer on January 20, 2019 at 11:50am

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'ग़म मेरे पास हमेशा नहीं रह पाते हैं
कोई शम्शीर कहाँ रहती है शम्शीर* के साथ'

इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,दूसरी बात ये कि कथ्य पर विचार करें,ऊला मिसरे में 'हमेशा' और सानी मिसरे में 'कहाँ',यानी ग़म हमेशा नहीं रहते लेकिन रहते तो हैं,लेकिन शमशीर नहीं रहती,इस बारीक नुक्ते पर ग़ौर करें ।

'खोलिये ताला-ए-तक़दीर को तदबीर के साथ'

इस मिसरे में 'ताला' शब्द हिन्दी भाषा का है,इसलिए इसमें इज़फ़त नहीं लगेगी,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

"क़ुफ़्ल तक़दीर का खोलें ज़रा तदबीर के साथ '

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
8 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
20 hours ago
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
yesterday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
yesterday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service