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बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सादर।
आद0 बलराम जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर दाद के साथ बधाई देता हूँ।
जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'मदरसे, मस्जिदें हैं, मैक़दे हैं, कारख़ाने हैं'
इस मिसरे में सहीह शब्द है "मद-रसे"और इसका वज़्न 212 है,इसी तरह 'मस्जिद' का बहुवचन "मसाजिद" होता है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'मदारिस हैं,मसाजिद,मैकदे हैं कारख़ाने हैं'
'ये लाबरिस से पौधे बस इसी अफ़वाह से खुश हैं'
इस मिसरे में 'लाबरिस' को "लावारिस" कर लें,एक जानकारी और देना चाहूँग़ा कि देवनागरी के हिसाब से इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,लेकिन उर्दू के हिसाब से नहीं है ।
'जताने अख़्तियार इन पर भी दावेदार आने हैं'
इस मिसरे में 'अख़्तियार' को "इख़्तियार" कर लें ।
'उन्हीं का हुक़्म मेरी धड़कनें हर बार माने हैं'
इस मिसरे में 'धड़कनें' बहुवचन है,इस हिसाब से 'माने' की जगह क़ाफ़िया "मानें" हो रहा है,ग़ौर करें ।
'हमारे चाल चलनों पर वो अब तनक़ीद करते हैं'
इस मिसरे में 'चलनों' शब्द उचित नहीं इस मिसरे को आप चाहें तो यूँ कर सकते हैं:-
'चलन पर वो हमारे,देखिये तनक़ीद करते हैं'
बाक़ी शुभ शुभ ।
'अभी तलवार आई है, अभी सरशार आने हैं'
इस मिसरे में आपने 'सरशार' का क्या अर्थ लिया है?
आ. भाई बलराम जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
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