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मिला न जो हिज़्र इश्क़ में तो कहाँ मुक़म्मल हुई मुहब्बत (३५)

मिला न जो हिज़्र इश्क़ में तो कहाँ मुक़म्मल हुई मुहब्बत 
डरे फ़िराक़-ओ-ग़मों से उसको न इश्क़ फरमाने की ज़रूरत 
**
सफ़र मुहब्बत की मंजिलों का हुज़ूर होता कभी न आसाँ 
यहाँ न साहिल का कुछ पता है न तय सफ़र की है कोई मुद्दत
**
न जाने कितने हैं इम्तिहाँ और क़दम क़दम पर बिछे हैं कांटे 
रह-ए-मुहब्बत पे है जो चलना तो दिल में रक्खें ज़रा सी हिम्मत 
**
रक़ीब गर मिल गया कोई तो बढ़ेंगी दुश्वारियां सफ़र की 
दिखाई दरियादिली अगर तो बढ़ेगी चाहत की और दिक्कत 
**
यहाँ समुन्दर में डूबने का बना रहेगा हमेशा ख़तरा 
न अपने हाथों में नाव अपनी न अपने बस में यहाँ है क़िस्मत 
**
नफ़ा-जियाँ सोचकर है कोई चला मुहब्बत की रहगुज़र में 
तो ग़ौर कर लो कभी मुहब्बत हुआ न करती कोई तिज़ारत*
**
न खेल और है जुआ मुहब्बत लगा सके जिसमें कोई बाज़ी 
जो हारता इसमें जीतता है अज़ीब शय है जहाँ में उल्फ़त 
**
जवाब कोई न इश्क़ का दे अगर तो उगलोगे ज़ह्र क्या तुम ?
ये प्यार कैसा हुआ जहाँ में कि दिल में जिस से जनम ले नफ़रत 
**
न जिस्म से इसका लेना देना है रूह से सिर्फ़ इसका नाता 
वही है सच्ची 'तुरंत ' उल्फ़त जिसे करोगे समझ इबादत 
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
०५ /०३/२०१९

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 8, 2019 at 1:12am

आपकी पुरखुलूस हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रग़ुज़ार हूँ . नवाज़िश जनाब Hariom Shrivastava जी |

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 8, 2019 at 1:11am

आदरणीय Samar kabeer साहब | आदाब | आपकी क़ीमती दाद मेरे लिए वाइस-ए-फ़ख्र है मोहतरम | नवाज़िश-ओ-करम का दिल से शुक्रिया |

Comment by Hariom Shrivastava on March 7, 2019 at 5:46pm

वाह,बहुत सुंदर ग़ज़ल कही आदरणीय गहलोत जी।

Comment by Samar kabeer on March 7, 2019 at 2:31pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

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