मिला न जो हिज़्र इश्क़ में तो कहाँ मुक़म्मल हुई मुहब्बत
डरे फ़िराक़-ओ-ग़मों से उसको न इश्क़ फरमाने की ज़रूरत
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सफ़र मुहब्बत की मंजिलों का हुज़ूर होता कभी न आसाँ
यहाँ न साहिल का कुछ पता है न तय सफ़र की है कोई मुद्दत
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न जाने कितने हैं इम्तिहाँ और क़दम क़दम पर बिछे हैं कांटे
रह-ए-मुहब्बत पे है जो चलना तो दिल में रक्खें ज़रा सी हिम्मत
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रक़ीब गर मिल गया कोई तो बढ़ेंगी दुश्वारियां सफ़र की
दिखाई दरियादिली अगर तो बढ़ेगी चाहत की और दिक्कत
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यहाँ समुन्दर में डूबने का बना रहेगा हमेशा ख़तरा
न अपने हाथों में नाव अपनी न अपने बस में यहाँ है क़िस्मत
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नफ़ा-जियाँ सोचकर है कोई चला मुहब्बत की रहगुज़र में
तो ग़ौर कर लो कभी मुहब्बत हुआ न करती कोई तिज़ारत*
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न खेल और है जुआ मुहब्बत लगा सके जिसमें कोई बाज़ी
जो हारता इसमें जीतता है अज़ीब शय है जहाँ में उल्फ़त
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जवाब कोई न इश्क़ का दे अगर तो उगलोगे ज़ह्र क्या तुम ?
ये प्यार कैसा हुआ जहाँ में कि दिल में जिस से जनम ले नफ़रत
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न जिस्म से इसका लेना देना है रूह से सिर्फ़ इसका नाता
वही है सच्ची 'तुरंत ' उल्फ़त जिसे करोगे समझ इबादत
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
०५ /०३/२०१९
Comment
आपकी पुरखुलूस हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रग़ुज़ार हूँ . नवाज़िश जनाब Hariom Shrivastava जी |
आदरणीय Samar kabeer साहब | आदाब | आपकी क़ीमती दाद मेरे लिए वाइस-ए-फ़ख्र है मोहतरम | नवाज़िश-ओ-करम का दिल से शुक्रिया |
वाह,बहुत सुंदर ग़ज़ल कही आदरणीय गहलोत जी।
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
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