बूढ़े ने आँखें बंद किये-किये ही करवट ली I उसका ध्यान किचन से आती आवाज की ओर चला गया I
‘कैसा बना है ?’– बहू ने पूछा I
‘बहुत बढ़िया‘- बेटे ने कहा –‘थोड़ा चटनी और डालो I हाँ बस--बस I’
‘अच्छा लगा---? नमक ठीक पड़ा है न ?’
‘हाँ, बहुत मजेदार है I थोडा और कुरकुरा करो I’
‘जल जायेंगे ---‘
‘जलेंगे नहीं, बस थोड़ा लाल हो जाय I ‘- लडके ने उकसाया I फिर जैसे उसे कुछ याद आया –‘पापा कहाँ हैं ?’
बूढ़े की आँखों में चमक आयी I कम से कम बेटे को तो उसकी फ़िक्र है I उसके सामने गरमा-गरम पकौड़े की प्लेट नाच उठी I मन में आशा की किरण जागी I
‘पापा सो रहे है I‘ बहू ने ठंडे स्वर में कहा –‘लो, ये वाले कुरकुरे हैं I’
बूढ़े का मन बुझ गया I उसने एक लम्बी उसांस ली और इस प्रकार खांसा कि बेटा सुन ले I
‘बढ़िया है –I’- बेटे ने चटकारे लेते हए कहा –‘पेट भर गया I पापा जाग गए हैं I’
‘अरे, अभी कैसे भर गया ? थोड़ी देर में फिर मांगने लगोगे i लो, दो और लो I’
‘अच्छा, एक दे दो I’
‘एक नही दो –- I’
‘अच्छा बाबा, तुम नही मानोगी I अब चाय चढ़ा दो और देखो पापा जाग चुके हैं, उन्हें भी दे आओ I’
बूढ़े का मन हुलस उठा I उसने फिर एक लम्बी खखार ली I
तभी किचन से बहू की धीमी आवाज आयी - ‘पापा ने दो बजे खाना खाया था और अभी सात बजे हैं I उनका पेट ठीक नहीं रहता I भूख भी कम लगती है I मोशन आने लगते है I’– बहू ने चिंता जताते हुए कहा I
बूढ़े का कलेजा हलक तक आ गया I उसने प्रतिवाद करना चाहा पर जुबान ने साथ नहीं दिया
‘अगर ऐसा है, तब रहने दो, पकौड़ी तो और नुकसान करेगी I’
उम्मीद का पेड़ धराशायी हो गया I बूढ़े ने अपनी नम आँखे पोंछ कर करवट बदल ली I
( मौलिक / अप्रकाशित )
Comment
वाह वाह श्रीवास्तव जी बहुत बढ़िया लघुकथा की मुबारकबाद
लघुकथा बहुत ही पसन्द आई। इसमें सच्चाई है, अच्छी सोच है, पाठक को पकड़ रखती है ऐसी रचना। बधाए, आ० गोपाल नारायण जी
जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी। वरिष्ठ जनों की बच्चों जैसी खाद्य पदार्थों के प्रति रुचि होना।उसकी पूर्ति ना होने से उत्पन्न आंतरिक पीड़ा और उनकी प्रतिबंधित खान पान व्यवस्था पर लाज़वाब लघुकथा।
वाह, बहुत बढ़िया और हक़ीक़त के करीब की रचना, बुढ़ापे में तो खाने पीने की लालसा और बढ़ जाती है लेकिन स्वास्थ्य साथ नहीं देता. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया लघुकथा के लिए आ डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब
वर्तमान में पारिवारिक परिवेश में पनपते विचारों का गहन मंथन चित्रित किया है सर आपने। इस लघु कथा में एक कटु यथार्थ को दर्शाती मार्मिक व्यथा सजीव हो उठी। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई एवं नमन आदरणीय डॉ गोपल जी।
वाह। बेहतरीन व एकदम उम्दा और तीखी, विचारोत्तेजक। परहेज़ चलते हुए भी मीठी वाणी में दुलार सहित वैकल्पिक रुचि स्वल्पाहार कराना चाहिए बहू व बेटे द्वारा।
हार्दिक बधाई और आभार इस अहम मुद्दे को उठाने हेतु आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहिब।
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