मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
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हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ तो क्या करें
ऐसे में उनसे दूर ना जाएँ तो क्या करें
oo
उसकी अना ने सारे तअल्लुक़ मिटा दिए
उस बे-वफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें
oo
मीना भी तू है मय भी तू साक़ी भी जाम भी
आँखों में तेरी डूब न जाएँ तो क्या करें
oo
कश्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर
हो जाएं गर ख़िलाफ़ हवाएँ तो क्या करें
oo
खुशियों का इंतज़ार 'रज़ा' मुद्दतों से है
पीछा अगर न छोड़ें बलाएँ तो क्या करें
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बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जनाब अजय कुमार शर्मा जी ,
आपके हौसला अफ़जाई के लिए बहुत शुक्रिया ,
जनाब सुशील सरना जी ,
आपके हौसला अफ़जाई के लिए बहुत शुक्रिया ,
आपकी पुरख़ुलूस हौसला अफ़जाई का बेहद शुक्रिया मोहतरम समर साहब,
बहुत शुक्रिया बृजेश जी
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है सलीम साहब..बधाई
सलीम रजा साहब बधाई स्वीकार करें.
बहुत सुन्दर गजल.
वाह आदरणीय रज़ा साहिब, बहुत ही खूबसूरत अहसासों को अंज़ाम दिया आपने इस ग़ज़ल में। दिल से मुबारक कबूल फरमाएं सर।
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम रज़ा रीवा जी।बेहतरीन गज़ल।
कश्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर
हो जाएं गर ख़िलाफ़ हवाएँ तो क्या करें
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