प्रतीक्षा लौ ...
जवाब उलझे रहे
सवालों में
अजीब -अजीब
ख्यालों में
प्रतीक्षा की देहरी पर
साँझ उतरने लगी
बेचैनियाँ और बढ़ने लगीं
ह्रदय व्योम में
स्मृति मेघ धड़कने लगे
नैन तटों से
प्रतीक्षा पल
अनायास बरसने लगे
सवाल
अपने गर्भ में
जवाबों को समेटे
रात की सलवटों पर
करवटें बदलते रहे
अभिव्यक्ति
कसमसाती रही
कौमुदी
खिलखिलाती रही
संग रैन के
मन शलभ के प्रश्न
बढ़ते रहे
जवाब
प्रतीक्षा लौ में
जलते रहे
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय amod shrivastav (bindouri)जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आ सुसील सर प्रणाम
सर कविता के लिए दिली बधाई। ...
अपने गर्भ में
जवाबों को समेटे
रात की सलवटों पर
करवटें बदलते रहे..... बेहद भाव पूर्ण रचना
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन और भावपूर्ण रचना पर बधाई स्वीकार कीजिये
आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब , ... सृजन के भावों आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार।
खुब सुन्दर रचना सर
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता हुई,बधाई स्वीकार करें ।
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