For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सितारे-चाँद, अच्छे दिन, ऋणों की बात जपनी है
सजा कर बेचना है स्वप्न ये पहचान छपनी है
बनाते हम बड़ी बातें तथा जुमले खपाते हैं
सियासत तुम समझते हो मगर दूकान अपनी है 

 

जिन्हें तो चिलचिलाती धूप का अनुभव नहीं होना
कभी हाथों जिन्हें सामान कोई इक नहीं ढोना
जिन्हें ज़ेवर लदी उड़ती-मचलती औरतों का साथ
वही मज़दूर-मेहनत औ’ ग़मों का रो रहे रोना 

 

सियासत की, धमक से औ’ डराया ख़ूब अफ़सर भी
लिखा है पत्रिका में इंकिलाबी लेख जम कर भी
उठा कर मुट्ठियाँ अकसर भरी है चीख नारों की
मगर है ध्यान अर्जन पर.. न छोड़ा हक़ सुई भर भी
*****
सौरभ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1036

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hariom Shrivastava on May 8, 2019 at 9:47pm

वाह,वाहहह,शानदार मुक्तक। गजब की मारक क्षमता। हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ जी।...मगर दूकान अपनी है,वाहहह

Comment by नाथ सोनांचली on May 6, 2019 at 9:20am

आद0 सौरभ पांडेय जी सादर अभिवादन। मेरी रचनाओं पर आपका आना मेरे लिए पुरस्कार से कम नहीं। समयानुकूल आप अपनी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से मेरी रचनाओं को अवश्य सुशोभित करें। सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2019 at 8:35am

आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी, आपका भाव बना रहे .. आपसे मिले अनुमोदन से मन प्रसन्न है. 

हार्दिक धनय्वाद

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2019 at 8:33am

आदरणीय नरेन्द्र चौहान जी, आपको यह प्रयास अनुमोदनीय लगा यह मेरे लिए भी आश्वस्तिकारी है. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2019 at 8:32am

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी, आप जैसे विभिन्न छंद-अभ्यासियों से अनुमोदन मिलना आश्वस्त करता है. हार्दिक धनय्वाद भाई. 

एक बात और आपके सवैया छंद मनमोह रहे हैं. खैर, उनपर विशेष रूप से आऊँगा.

शुभातिशुभ

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2019 at 8:29am

भाई राम शिरोमणि, पटल पर आपसे मिला अनुमोदन विशेष है. हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2019 at 8:28am

आदरणीय समर साहब, मुक्तकों को आपसे अनुमोदन मिला, मेरा रचनाकर्म सार्थक हुआ. हार्दिक धन्यवाद. 

जहाँ तक कुछ स्थापित मूल्यों को अपनाने या न अपनाने की बात है उसको लेकर कोई समझौता नहीं है. फिर भी हो चुकी भूल तो भूल ही है. उसे सुधारा जाना ही चाहिए. वस्तुतः, तीनों मुक्तक मोबाइल पर लिखे गये और पूरा होते ही उसी समय मोबाइल से ही पोस्ट कर दिए गये. अब मोबाइल के एडिट बॉक्स का आकार और विस्तार कई बार अपनी सीमाओं के कारण कई पहलुओं ओट में रखता है. सो हमसे भूल हो गयी. अलबत्ता, सुधार कर लिया है.

जय-जय 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2019 at 8:22am

आदरणीय सुशील सरनजी,  पकी विशद टिप्पणी ने मुझे मेरे रचनाकर्म का मान बढ़ाया है इस हेतु आभार. आपकी छांदसिक रचनाओं के क्रम में हुई प्रगति भी हमें विशेष रूप से आश्वस्त करती है. 

शुभ-शुभ

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 4, 2019 at 8:29pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। अति उत्तम मुक्तक हुए हैं। हार्दिक बधाई ।

Comment by narendrasinh chauhan on May 4, 2019 at 6:07pm

आदरणीय  सौरभजी , खूब सुन्दर !  इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service