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हक़ीक़त न बोले बनाये फ़साना
अज़ब ये तरक्की अज़ब है ज़माना //१
नहीं आज उसमें ज़रा सी भी शफ़क़त
ग़रीबों की लाशों में ढूंढे ख़ज़ाना //२
सँवारा जिसे था बड़ी आरज़ू से
बुढ़ापा में छीना वही आशियाना //३
ज़रूरी कहाँ है गिराना ज़मीं पे
है काफ़ी उसे बस नज़र से गिराना //४
गुलों की तरह है मेरे दिल की हसरत
मसल दो न छोड़े ये ख़ुशबू लुटाना //५
क़मर जाने कब से भटक ही रहा है
तेरा शह्र दर शह्र ढूंढे ठिकाना //६
-- क़मर जौनपुरी
Comment
आ. भाई कमर जी, गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई ।
जनाब कमर साहब समर साहब की बाते बहुत उपयोगी है क्रपया समझिये । समर साहब का आभार जो हम नौसिखियो को वे इतना वक्त देते है
जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
' कहे ना हक़ीक़त बनाये फ़साना
किया है तरक़्क़ी अज़ब ये ज़माना'
मतला यूँ करें :-
'हक़ीक़त न बोले बनाये फ़साना
अजब ये तरक़्क़ी अजब है ज़माना'
' नहीं रूह में अब ज़रा सी भी शफ़क़त',
इस मिसरे को यूँ करें:-
'नहीं आज उसमें ज़रा सी भी शफ़क़त'
' जो आया बुढ़ापा छिना आशियाना '
इस मिसरे को यूँ करें:-
'बुढ़ापे में छीना वही आशियाना'
' हमें भी खुशी से मचलना सिखा दो
सिखा दो हुनर प्यार को भूल जाना'
ये शैर भर्ती का है ।
छटे शैर के दोनों मिसरों में रब्त(ताल-मेल)नहीं है ।
' क़मर राह में बस भटक ही रहा है
शहर दर शहर ढूंढे तेरा ठिकाना'
इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,और सानी पर चर्चा हो चुकी है,इस शैर को यूँ कर लें:-
'क़मर जाने कब से भटक ही रहा है
तेरा शह्र दर शह्र ढूंढे ठिकाना'
//क्या यह ग़ज़ल के क्षेत्र में बड़ा दोष है या चलने लायक है।//
'शहर' आम बोल में वो लोग बोलते हैं जिन्हें भाषा की शुद्धता के बारे में पता नहीं होता,लेकिन ग़ज़लकार को ये ज़ेब नहीं देता कि वो शुद्ध शब्द को छोड कर अशुद्ध को अपनाए,दूसरी बात ग़ज़ल कोई खेल नहीं है,ग़ज़ल जिस भाषा की विधा है,उसी के विधान को अपनाना होगा,किसी ने कुछ ग़लत किया हो तो उसका उदाहरण देकर ख़ुद ग़लती करना मूर्खता होगी ।
शुद्ध शब्द है "शह्र" और इसका वज़न है 21,लेकिन कई लोग इसे शहर12 के वज़न पर एक ग़लती करने वाले का हवाला देकर धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं,लेकिन जो अच्छे ग़ज़लकार हैं वो इसे 21 ही लेते हैं, ये किसी भी ग़ज़लकार के लिये मुश्किल नहीं होता कि वो इसे 21 पर बाँधे, लेकिन जान बूझ कर ऐसा करने वाले मेरी नज़र में हठधर्म हैं,फैसला आपको करना है कि आप किसे अपनाते हैं ।
आप चाहें तो आख़री शैर का सानी मिसरा यूँ कर सकते हैं :-
'तेरा शह्र दर शह्र ढूंढे ठिकाना'
हार्दिक बधाई आदरणीय कमर जौनपुरी जी। बेहतरीन गज़ल।
ज़रूरी कहाँ है गिराना ज़मीं पे
है काफ़ी उसे बस नज़र से गिराना //
वाह्ह्ह बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है क़मर साहब दाद प्रेषित है मकते में शह्र को शहर लिखा है आपने ?
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