For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत : भूल जा / संजीव 'सलिल'

भूल जा
संजीव 'सलिल'
*
आईने ने कहा: 'सत्य-शिव' ही रचो,
यदि नहीं, कौन 'सुन्दर' कहाँ है कहो?
लिख रहे, कह रहे, व्यर्थ दिन-रात जो-
ढाई आखर ही उनमें तनिक तुम तहो..'

ज़िन्दगी ने तरेरीं निगाहें तुरत,
कह उठी 'जो हकीकत नहीं भूलना.
स्वप्न तो स्वप्न हैं, सच समझकर उन्हें-
गिर पड़ोगे, निराधार मत झूलना.'

बन्दगी थी समर्पण रही चाहती,
शेष कुछ भी न बाकी अहम् हो कहीं.
जोड़ मत छोड़ सब, हाथ रीते रहें-
जान ले, साथ जाता कहीं कुछ नहीं.

हैं समझदार जो कह रहे: 'कुछ सुधर
कौन किसका कहाँ कब, इसे भूल जा.
भोगता है वही, जो बली है यहाँ-
जो धनी जेब में उसके सुख हैं यहाँ.'

मौन रिश्ते मुखर हो सगे बन गये,
दूर दुःख में रहे, सुख दिखा मिल गले.
कह रहे नर्मदा नेह की नित बहा-
'सूर्य यश का न किंचित कभी भी ढले.

मन भ्रमित, तन ज्वलित, है अमन खोजता,
चाह हर आह बनकर परखती रही.
हौसला-कोशिशें, श्रम-लगन नित 'सलिल'
ऊग-ढल भू-गगन पर बिखरती रही.

चहचहा पंछियों के जगाया पुलक,
सोच कम, कर्म कर, भूल परिणाम जा.
न मिले मत तरस, जो मिले कर ग्रहण-
खीर खा बुद्ध बन, शेष सब भूल जा.

*****

Views: 397

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by upasna siag on January 24, 2013 at 4:03pm

 मन भ्रमित, तन ज्वलित, है अमन खोजता,
चाह हर आह बनकर परखती रही. 
हौसला-कोशिशें, श्रम-लगन नित 'सलिल'
ऊग-ढल भू-गगन पर बिखरती रही. .......बहुत सुन्दर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 23, 2013 at 5:26pm

शिवत्व की चाहना, नर्मदा की अजस्रता और बुद्धत्व के प्रति स्वीकार.. . अद्भुत विन्यास हुआ है, आदरणीय.

अंतरमन की नीर-क्षीर करने की कुशलता, जो कि विवेकजन्य स्पष्टता के साथ सदा अपनी बातें कहता है, की क्या ही सुन्दरता से प्रस्तुति हुई है. लौकिक संबंधों का वर्तमान स्वरूप और इसके निरंतर असंतुलित होते चले जाने की विवशता को बखूबी उभारा गया है. सहज जीवन को जीते हुए बौद्धिकता के मध्य-मार्ग को साधना कितना अनिवार्य है, इसकी विवेचना करती आपकी प्रस्तुत रचना ’जो शाश्वत है, वह दैदिप्यमान भानु है’ को आवश्यक स्वर देती है. बहुत सुन्दर !  इन पंक्तियों की अंतरधार को मेरा नमन -

मन भ्रमित, तन ज्वलित, है अमन खोजता,
चाह हर आह बनकर परखती रही.
हौसला-कोशिशें, श्रम-लगन नित 'सलिल'
ऊग-ढल भू-गगन पर बिखरती रही.

गंग-जमुनी शाब्दिकता भली लगी है.  इस प्रस्तुति हेतु सादर बधाई व धन्यवाद.

सादर

Comment by sanjiv verma 'salil' on January 23, 2013 at 4:59pm

राजेश जी, लक्ष्मन जी, विशाल जी,
गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं.
आपने गीति रचना को पढ़ा और सराहा, मेरा कवि-कर्म सफल हुआ. आभार.

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on January 22, 2013 at 9:31pm

एक अर्थपूर्ण.........एक दर्शन लिये........सराहनीय रचना के लिये बधाई स्वीकारें सर जी..........

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 22, 2013 at 4:13pm

बहुत सुन्दर भाव अभ्व्यक्ति और आदर्श पर काव्य की निम्न अंतिम पंकियों के लिए विशेष बधाई स्वीकारे आदरनीय संजीव सलिल जी -
चहचहा पंछियों के जगाया पुलक,
सोच कम, कर्म कर, भूल परिणाम जा. 
न मिले मत तरस, जो मिले कर ग्रहण-
खीर खा बुद्ध बन, शेष सब भूल जा.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2013 at 5:27pm

ज़िन्दगी ने तरेरीं निगाहें तुरत,
कह उठी 'जो हकीकत नहीं भूलना.
स्वप्न तो स्वप्न हैं, सच समझकर उन्हें-
गिर पड़ोगे, निराधार मत झूलना.' बहुत सुन्दर प्रेरणास्पद गीत  रचा  है आदरणीय सलिल जी सभी पद एक से बढ़कर एक हैं बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सतरंगी दोहेः विमर्श रत विद्वान हैं, खूंटों बँधे सियार । पाल रहे वो नक्सली, गाँव, शहर लाचार…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई रामबली जी, सादर अभिवादन। सुंदर सीख देती उत्तम कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"रामबली गुप्ता जी,शुभ प्रभात। कुण्डलिया छंद का आपका प्रयास कथ्य और शिल्प दोनों की दृष्टि से सराहनीय…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"बेटी (दोहे)****बेटी को  बेटी  रखो,  करके  इतना पुष्टभीतर पौरुष देखकर, डर जाये…"
14 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार सुशील भाई जी"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार समर भाई साहब"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"बढियाँ ग़ज़ल का प्रयास हुआ है भाई जी हार्दिक बधाई लीजिये।"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"दोहों पर बढियाँ प्रयास हुआ है भाई लक्ष्मण जी। बधाई लीजिये"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service