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अच्छे भाव हैं ,वैसे भी आजकल गरीब घोषित होने की भी होड़ दिखती है |फ़ोटो खिचवाने वाले और गरीबी राग गाने वाले तो दिखते हैं बस नहीं दिखती तो ऐसी दूरदर्शिता जिससे गरीबी दूर हो |
आदरणीय डॉ साहब, सच कहूँ तो इसबार तनिक जल्दबाजी हो गयी, कविता पर आलेख हावी हो गया, निवेदन है कि इसी भाव को पुनः गठित करें देखिये आनंद न आ जाए तो कहियेगा....
कुछ यूँ ....
गरीब होता नहीं
घोषित होता है
जैसे होता है घोषित
बाढ़ और सुखाड़ प्रभावित क्षेत्र
गरीबी तो एक रेखा है
जो बाँटती है
आदमी को आदमी से
.....
.....
भाव बहुत ही सुन्दर है आदरणीय बस अभिव्यक्ति को साधना शेष है. बधाई इस प्रयास पर.
गरीब होता नहीं है ,
गरीब घोषित होता है ।
वैसे ही जैसे सूखा घोषित होता है,
जैसे बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र घोषित होता है ।
गरीबी की एक रेखा होती है ,
होती वो गरीबी अमीरी के बीच की है ,
सम्मान वश उसे गरीबी की रेखा कहते हैं ,
आदमी जितना इस रेखा को जानता है ,
उतना विश्वत रेखा को नहीं जानता है ।........... संभवतः टंकण त्रुटी है .... विषुवत रेखा
उसको लांघ गए तो वाह,
गरीब घोषित होने के चांस बन गए ।
होना न होना तो अलग ,
हो भी गए तो क्या पा जाओगे ,
नहीं होगे तो क्या है, जो खो दोगे ।
हाँ, एक बार गरीब घोषित हो गए ,
तो एक हैसियत बन जाएगी.
एक परिचय बन जाएगा ,
एक बड़े वर्ग में गिनती होगी , वरना
घूमते रहो ऐसे ही , पूछता है कौन ?
आदरणीय डॉ शंकर सर यहाँ तक कविता कमाल का आनंद देती है एक एक शब्द बहुत असरदार .... इस भाग के लिए साधुवाद
लेकिन फिर शब्द अधिक और भाव कम होने लगते है ... एक निवेदन है यदि आप कविता के इस भाग को थोड़ा लघु कर पाठक पर छोड़ दे तो कमाल की कविता निकल आएगी. वैसे अतुकांत कविता के विषय में बिलकुल नहीं जानता लेकिन पाठक की हैसियत से उपरोक्त भाग की कविता पढ़कर जितना आनंदित हुआ और अंत में आनंद में खलल पड़ने लगी ....
तुम्हारा मेन्यू बड़े-बड़े लोग घोषित करेगें ,
खुद तुम्हारे लिए कसमें खायेंगें ,आंसू बहाएंगें ,
तुम्हारी झोपड़िया में पांच -दस साल में
एक बार लॉव लश्कर के साथ रतिया बितायेगें ,
फोटू खिचवाएंगें , नाम कमाएंगें , यश कमाएंगें ,
तुम्हें तुम्हारे हाथ - पैर का कभी नहीं बनायेंगें ॥
कभी नहीं बनायेंगें ॥
यदि आपको उचित लगे तो इस भाग को थोड़ा लघु किया जाए तो कविता का आनंद चौगुना हो जाएगा... सर ये एक पाठक का निवेदन ...
बड़े-बड़े लोग
घोषित करेंगे तुम्हारा मेन्यू,
कसमें, आंसूं फोटो, यश, नाम
उगा लेंगे ये सब.
लेकिन
नही उगने देंगे तुम्हारे हाथ पैर
कभी नहीं.
इस पाठक की बात उचित न लगे तो कनिष्ट को क्षमा करने का दायित्व आप पर है सर ....सादर
Vijay sir! हाँ, एक बार गरीब घोषित हो गए ,
तो एक हैसियत बन जाएगी.
एक परिचय बन जाएगा ,
एक बड़े वर्ग में गिनती होगी , वरना
घूमते रहो ऐसे ही , कौन पूछता है ।
तुम्हारा मेन्यू बड़े-बड़े लोग घोषित करेगें ,
खुद तुम्हारे लिए कसमें खायेंगें ,आंसू बहाएंगें ,
तुम्हारी झोपड़िया में पांच -दस साल में
एक बार लॉव लश्कर के साथ रतिया बितायेगें ,
फोटू खिचवाएंगें , नाम कमाएंगें , यश कमाएंगें ,
तुम्हें तुम्हारे हाथ - पैर का कभी नहीं बनायेंगें ॥
कभी नहीं बनायेंगें ॥---------------------------------------यथार्थ चित्रण i सुन्दर i वाह i
गरीब होता नहीं है ,
गरीब घोषित होता है । ..हाँ, एक बार गरीब घोषित हो गए ,तो एक हैसियत बन जाएगी.एक परिचय बन जाएगा ,एक बड़े वर्ग में गिनती होगी ,....... सुन्दर रचना आदरणीय डॉ विजय शंकर सर हार्दिक बधाई आपको ! सादर
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