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विवशता (लघुकथा) : डॉo विजय शंकर

बहुत ही व्यस्त कार्यक्रम था आज मंत्री जी का। सारे दिन शैक्षिक गुणवत्ता की कायर्शाला में अधिकारियों , शिक्षाविदों के साथ वाद-विवाद में जबरदस्त सक्रिय रहे माननीय मंत्री जी, बार बार यही दोहराते रहे , " सदियों से हम विश्व-गुरु रहें हैं, हम ऐसी शिक्षा दें कि कोई भी शिक्षा के लिए विदेश न जाना चाहे।"
शाम घर जाते कार में पी ए से बता रहे थे:

"हफ्ते भर बाहर रहूंगा, रात दिल्ली निकल रहा हूँ I कल अमेरिका की फ्लाइट है, बेटे को हॉस्टल छोड़ कर आना है।.कहाँ कहाँ का जुगाड़ लगाया है तब एडमिशन मिला है इस बार। "
पी ए ने भी पुए पर चीनी रखी , " सर बस , अब देखियेगा , बाबा कुछ ही साल में पूरे अंग्रेज बन के लौटेंगे। "
" देखो , ईश्वर सुन ले हमारी " , गहरी सांस छोड़ते हुए कहा मंत्री जी ने।

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 23, 2015 at 8:16pm
बहुत अच्छा कटाक्ष । सफल लघुकथा । हार्दिक बधाई आ. विजय शंकर सर।
Comment by Tanuja Upreti on April 23, 2015 at 7:28pm
आदरणीय,अच्छा व्यंग्य है । पुए पर चीनी रखना वाक्य मन को बड़ा भा गया।
Comment by Nidhi Agrawal on April 23, 2015 at 6:21pm

सटीक और सचित्र कर देती लघुकथा .. झूठ के मुलम्मे बंद कमरों में खुलते हैं 

Comment by Shyam Narain Verma on April 23, 2015 at 2:54pm
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय, हार्दिक बधाई स्वीकारें
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 23, 2015 at 2:53pm

विजय सर !

कथनी करनी का अंतर है  आदरणीय -पर उपदेश कुशल बहुतेरे ---

Comment by savitamishra on April 23, 2015 at 12:51pm

बढ़िया कथा आदरणीय ..सादर नमस्ते

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