आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी .... नमस्कार .... क्षमा चाहता हूँ लाइव चैट पर आपका मेसेज देख नहीं पाया तब मैं राहुल दांगी जी की ग़ज़ल पढ़ कर उस पर टीप लिख रहा था ... सादर
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, सादर अभिवादन ! मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी रचना "कविता : तुम्हारा घोंसला" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे | आपको प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो | शुभकामनाओं सहित आपका गणेश जी "बागी संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक ओपन बुक्स ऑनलाइन
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
Hari Prakash Dubey's Comments
Comment Wall (12 comments)
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online
क्षमा चाहता हूॅं आदरणीय मैं इस मंच पर सतत नहीं था।
नूतन वर्ष 2016 आपको सपरिवार मंगलमय हो। मैं प्रभु से आपकी हर मनोकामना पूर्ण करने की कामना करता हूँ।
सुशील सरना
सादर।
आदरणीय हरिप्रकाश जी ..आपका मित्र होना मेरे लिए सुखद है ..आपकी रचना को माह की श्रेष्ठ रचना का सम्मान मिला इस सफलता के लिए आपको ढेर सारी बधाई सादर
आदरणीय Hari Prakash Dubey साहब स्वागत आपका, एवं माह की श्रेष्ठ आपकी रचना हेतु चयनित होने पर हार्दिक बधाई स्वीकारें..सादर.
आपकी मित्रता का ह्रदय से स्वागत है आदरणीय हरि प्रकाश जी
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी .... नमस्कार .... क्षमा चाहता हूँ लाइव चैट पर आपका मेसेज देख नहीं पाया तब मैं राहुल दांगी जी की ग़ज़ल पढ़ कर उस पर टीप लिख रहा था ... सादर
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी रचना " कविता : तुम्हारा घोंसला" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
धन्यवाद ,आभार आपका।
मित्रता का हाथ बढ़ाने के लिए आभार।
सादर,
विजय निकोर
आपकी मित्रता का ह्रदय से स्वागत है आदरणीय हरिप्रकाश जी
आपका स्वागत है मित्र i आप स्वस्थ सानंद और उर्जस्वित रहे i सादर i
Welcome to
Open Books Online
Sign Up
or Sign In
कृपया ध्यान दे...
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
6-Download OBO Android App Here
हिन्दी टाइप
देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...
साधन - 1
साधन - 2
Latest Blogs
सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
यथार्थवाद और जीवन
ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
तरही ग़ज़ल
गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
दोहा पंचक. . . अपनत्व
दोहा पंचक. . . नया जमाना
ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
Latest Activity
सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169
सदस्य टीम प्रबंधनDr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
सदस्य टीम प्रबंधनDr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"